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________________ को त्रिकाल में भी प्राप्त नहीं कर सकते। उस शुद्ध अवस्था को प्राप्त करने के लिये हमें करना होगा - पुरुषार्थ अथवा प्रयत्न। वह पुरुषार्थ है - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय धर्म। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की आराधना करके संसारी भव्यात्मा कर्म-कालिमा से रहित होकर शुद्ध बनता है। यद्यपि आराधना चार हैं - सम्यग्दर्शन, सयाजान सम्यग्चारित्र और सम्यक तप, परन्त तप आराधना सम्यकचारित्र में गर्भित है अथवा तप के द्वारा चारित्र में निर्मलता आती है, चारित्र वृद्धि को प्राप्त करता है। अतः तप आराधना का पृथक् कथन किया है। आचार्य देवसेन स्वामी ने शुद्धात्म तत्त्व की प्राप्ति हेतु उपाय रूप में इन चार प्रकार की आराधनाओं का वर्णन सहज एवं सरल रूप में प्ररूपित किया है। आचार्य देवसेन स्वामी ने अपनी कृति आराधनासार में गागर में सागर भर दिया है, जिससे उनकी दार्शनिक दृष्टि का स्पष्ट अनुभव प्रतीत होता है। आराधना का स्वरूप एवं शाब्दिक अर्थ आराधना शब्द 'आङ्' उपसर्ग पूर्वक 'राध्' धातु से 'ल्युट' और टाप् प्रत्यय से सम्पन्न हुआ है। (आ + राध् + ल्युट् + टाप्)। वैसे तो 'आराधना' इस विषय पर पूर्वाचार्यों (आचार्य शिवार्य कृत भगवती आराधना, आचार्य अमितगति कृत मरणकण्डिका) द्वारा पर्याप्त वर्णन हुआ है, परन्तु अत्यन्त विस्तृत कृति होने के कारण आचार्य देवसेन स्वामी ने उस महान् विस्तृत विषय को अपने 'आराधनासार' नामक ग्रन्थ में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है। आराधना के स्वरूप के साथ उसके भेदों को भी प्ररूपित करते हुए आचार्य देवसेन स्वामी कहते हैं आराहणाइसारो तवदंसणणाणचरणसमवाओ। सो दुब्भेओ उत्तो ववहारो चेग परमट्ठो॥ अर्थात् तप, दर्शन, ज्ञान और चारित्र का समूह आराधनासार है, वह आराधना दो भेद वाली है, व्यवहार आराधना और परमार्थ (निश्चय) आराधना। आराधनासार गा.2 204 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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