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________________ माना जाता है, क्योंकि कर्मों का नाश बिना ध्यान के नहीं होता और चौदहवें गुणस्थान में अघातिया कर्मों का नाश होता है। इसलिये उपचार से ध्यान माना जाता है वास्तविक नहीं। ध्यान, ध्याता, ध्येय के विकल्प ये सब मन सहित जीवों के होते हैं, 13वें, 14वें गणस्थान में मन नहीं होता है। मन की प्रवृत्ति कार्मण काय योग से होती है, जहाँ कार्मण काय योग, वहाँ कर्म का उदय, जहाँ उदय वहाँ शुभ-अशुभ विकल्प होते हैं। जहाँ अशुभोपयोग वहाँ अशुभ ध्यान, जहाँ शुभोपयोग वहाँ शुभ ध्यान होता है और जहाँ शुद्धोपयोग होता है वहाँ शुद्ध ध्यान होता है। वह शुद्ध ध्यान भी दो प्रकार का है - आसव सहित और आस्रव रहित। प्रारम्भ के तीन शक्लध्यान आस्तव सहित होते हैं और चौथा शुक्ल ध्यान निरानव अर्थात् आस्रव रहित होता है। यही चौथा शुक्लध्यान उपचार से 14वें गुणस्थान में होता है। चौथा शुक्ल ध्यान ही है जिसमें कोई योग नहीं होता अन्यथा प्रथम शुक्ल ध्यान में तीनों योग, द्वितीय शक्लध्यान में तीनों में से कोई एक योग और तृतीय शुक्ल ध्यान में काय योग होता है। इस गुणस्थान में रहने वाले जीवों की उत्कृष्ट संख्या 598 है। अयोग केवली ‘गुणस्थान की विशेषतायें केवली भगवान् के योग का अभाव होने पर मोक्षगमन रूप अत्यन्त विशुद्धि होती है, उसे अयोग केवली गुणस्थान कहते हैं। * 18 हजार प्रकार के शील के स्वामी होते हैं, जिनके सम्पूर्ण कर्मों का संवर हो चुका है, जो अघातिया कर्मों का क्षय करने के चतुर्थ शुक्ल ध्यान में आरूढ़ हो चुके हैं, ऐसे योग से रहित केवली अयोग केवली कहलाते हैं। * वचनबल ऋद्धि के धारक मुनिराज को अ इ उ ऋ ल ये पाँच लघु अक्षर बोलने में जितना समय लगता है, उतना काल इस गुणस्थान का है। * इस गुणस्थान में साता अथवा असाता किसी एक का उदय रहता है, बल्कि सत्ता दोनों की है। भा. सं. गा. 682 वही गाथा 684-686 त. सू. 9/40 187 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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