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________________ * इस गुणस्थानवी जीव के एक आयु प्राण होता है। * इस गुणस्थान में शरीर नामकर्म का उदय नहीं होता है, परन्तु शरीर होता है। * इस गुणस्थान में शरीर का जैसा आकार होता है सिद्धों के आत्मप्रदेशों का आकार भी वैसा ही होता है। * इस गुणस्थान में 85 प्रकृतियों की सत्ता होती है, जिनमें से उपान्त्य समय में 72 और अन्त्य समय में 13 प्रकृतियों का नाश होता है। ** (A) मोक्ष होने पर इनका शरीर कपूर की भाँति उड़ जाता है। नख, केश रह जाते हैं, जिन्हें देवतागण अग्नि में संस्कार करके उसकी राख अपने-अपने मस्तक पर लगाते हैं। (B) मोक्ष प्राप्ति होने पर उनका शरीर ज्यों का त्यों बना रहता है, देवतागण आकर उस शरीर का अग्नि संस्कार करते हैं और अस्थियों को क्षीरोदधि समुद्र में विसर्जित कर देते हैं। (C) मोक्षप्राप्ति होने पर उनका पार्थिव शरीर कपूर की भाँति उड़ जाता है। देवतागण मायावी शरीर की रचना करके अग्नि संस्कार करते हैं। इस प्रकार इस सम्बन्ध में आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं। * 14वें गुणस्थानवी जीव का काल हमेशा समान होता है। * इस गुणस्थान का जघन्य विरह काल एक समय एवं उत्कृष्ट काल 6 माह प्रमाण * इस गुणस्थान में जीव निरन्तर प्रवेश करें जघन्य काल दो समय है एवं उत्कृष्ट काल 8 समय है। 8 समय के बाद नियम से विरह होता है। * 6 महीने 8 समय में 608 जीव इस गुणस्थान में प्रवेश करते हैं। न कम न ज्यादा। * यदि 6 माह का विरहकाल पड़े तो इस गुणस्थान में अगले 8 समय में प्रवेश का क्रम इस प्रकार से होगा-पहले समय में 32, द्वितीय समय में 48, तीसरे समय में 188 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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