________________ ग्रंथ है। नयचक्र में कर्ता का नाम नहीं है तथा ग्रंथ का नाम 'सारान्त' नहीं है, जैसे आराधनासार. दर्शनसार, तत्त्वसार आदि। इसमें मुझे कोई आपत्ति दिखाई नहीं पडती कि सब शास्त्रों के नाम ‘सारान्त' ही हों, क्योंकि आचार्य कुन्दकुन्द ने भी सारान्त के साथ-साथ पंचास्तिकाय आदि ग्रंथ रचे हैं तथा पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री ने 'माइल्लधवल' जी के 'नयचक्र' की प्रस्तावना में नयचक्र आचार्य देवसेन का स्वीकार किया है। नयचक्र नामक अनेक ग्रंथ हैं, जिनमें 'द्रव्यस्वभाव प्रकाशक नयचक्र' के कर्ता देवसेनाचार्य के शिष्य माइल्लधवल हैं, जिनका समय 12वीं का पूर्वार्द्ध है। 'श्रुतभवन दीपक नयचक्र' के कर्ता आचार्य देवसेन हैं, परन्तु इस नयचक्र में दो नयचक्रों का संग्रह है। लेकिन ये दोनों संस्कृत में रचे गये हैं, क्योंकि इनका मंगलाचरण संस्कृत श्लोक रूप में है जबकि आचार्य देवसेन रचित नयचक्र प्राकृत गाथाओं में निबद्ध है, जो माइल्लधवल ने आधाररूप में स्वीकार किया है। इन दोनों रचनाओं का समय निश्चित करने में पं. परमानन्द जी शास्त्री ने असमर्थता व्यक्त की है। पं. परमानन्दजी शास्त्री आलापपद्धति को इन देवसेन की कृति नहीं मानते हैं, क्योंकि इसमें लेखक का नाम नहीं तथा प्राकृत के नयचक्र से इसका विषय समान है परन्तु विशेष प्रमाण कोई नहीं जो यह सिद्ध करे कि यह इन्हीं देवसेन की कृति नहीं है। अतः देवसेन की 6 कृतियाँ है ऐसा प्रतीत होता है। वैशिष्ट्य - जो विषय 'भवगती आराधना' एवं 'मरणकण्डिका' जैसे विशाल ग्रन्थों में अनेक गाथाओं में निबद्ध है, उस बृहद् विषय का सुनिबद्ध एवं सुव्यवस्थित संक्षिप्तिकरण आचार्य देवसेन ने सामान्य पाठक की दृष्टि से आराधनासार में किया है। ये इनकी प्रखर बुद्धिमत्ता को द्योतित करता है। भावसंग्रह ग्रंथ में गुणस्थानों का वर्णन बड़ी सूक्ष्मदृष्टि से किया है। प्रत्येक गुणस्थान को सुष्ठुरूपेण स्पष्ट किया है, साथ ही अन्य मतों का स्वरूप बताते हुए उनका सम्यकरीति से तथा विशेष तर्कणा द्वारा खण्डन भी किया है। इससे इनका लेखन-कौशल स्पष्ट झलकता है। अपने नयचक्र और आलाप पद्धति में नयों के अनेकों भेद-प्रभेदों को उदाहरण सहित प्रस्तुत किया है जो एक अनूठा कार्य है। नयों का इतना विशद और सुन्दर वर्णन अन्य किसी आचार्य ने नहीं किया है। 'दर्शनसार' में अन्य मतों की उत्पत्ति का वर्णन एवं जैनधर्म के ही अन्य कई मतों की उत्पत्ति और समय स्पष्ट रूप से बताया है जो इन आचार्य की प्ररूपणा क्षमता को प्रकट करता है। आचार्य 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org