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________________ देवसेन ने 'तत्त्वसार' में अध्यात्मरस घोल दिया है। इन्होंने अपने समय में उपलब्ध अध्यात्म सम्बन्धि समयसार, परमात्मप्रकाश आदि और योग विषयक समाधितन्त्र, इष्टोपदेश आदि अनेक ग्रन्थों का सार समाहित कर दिया है। इन कृतियों से आचार्य देवसेन समस्त विषयों में लेखन कौशल एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रतीत होते हैं। अनेक विषयों में पारंगत होना इनकी महत्त्वपूर्ण एवं महान् दार्शनिक दष्टि को प्रदर्शित करता है। अध्यात्म, तर्कशक्ति, आचार, नय एवं अतिक्लिष्ट गणस्थानों आदि का वर्णन आपने सहजता और सरलता से निरूपित कर दिया, यह आपकी विशिष्टता को दर्शाता है। कतित्व - आचार्य देवसेन की 6 प्रसिद्ध कृतियाँ हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय यहाँ बताया जाता है 1. दर्शनसार - यह 51 प्राकृत गाथाओं का लघु ग्रन्थ है। इसमें विविध दर्शनों की उत्पत्ति तथा जैनधर्म के प्रचलित द्राविड, काष्ठा, माथुर और यापनीय आदि संघों की उत्पत्ति कब, किस प्रकार हुई इसका उल्लेख मिलता है। प्रथम गाथा में गुरु का स्मरण करते हुए तीर्थंकर महावीर को नमस्कार किया है। पूर्वाचार्यों द्वारा कथित गाथाओं का संग्रह किया है, ऐसा कहकर अपनी लघुता प्रगट की है। उत्थानिका के अनन्तर समस्त अन्य दार्शनिक मतों का प्रवर्तक ऋषभदेव के पौत्र मारीचि को माना है। मारीचि ने एकान्त, संशय, विपरीत, विनय और अज्ञान इन पाँचों मिथ्या मार्गों का प्रतिपादन किया था, इन्हीं के उत्तरभेद मिलाने पर 363 मतों का प्रतिपादन होता है। 2. भावसंग्रह - इस ग्रंथ में 701 गाथायें हैं। इनमें 14 गुणस्थानों का आलम्बन : लेकर अन्य मतों के स्वरूप को बताकर उनका युक्तिपूर्वक खण्डन भी किया है और आगे नौ पदार्थों का वर्णन करते हुए, मूलगुण तथा 12 व्रतों का संक्षिप्त विवरण देते हुए पुण्य के कारण पूजा और दान की विस्तृत एवं स्पष्ट विधि बतलाकर उनके फलों का भी वर्णन किया गया है। ध्यान के भेद-प्रभेदों एवं ध्येय रूप पंचपरमेष्ठी और टीकाकार द्वारा आचार्य परमेष्ठी के विशेष 36 मूलगुण बताये हैं और संक्षेप में सिद्ध परमेष्ठी का भी वर्णन किया है। __14 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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