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________________ केवली के भेद ___ केवलज्ञान की अपेक्षा तो सभी केवली समान होते हैं, क्योंकि केवलज्ञान एक ही प्रकार का सम्पूर्ण ज्ञान है। जो भी केवली होता है वह 63 प्रकृतियों का नाश तथा द्वितीय शुक्ल ध्यान को ध्याकर ही बनता है। अतः इनमें भेद नहीं हो सकता है। फिर भी आचार्यों ने अलग-अलग अपेक्षाओं से केवली के भी भेद किये हैं। आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी लिखते हैं कि केवली दो प्रकार के होते हैं -तद्भवस्थ अर्थात् जिस पर्याय में केवलज्ञान प्राप्त हुआ उसी पर्याय में स्थित केवली और सिद्ध केवली। कोई-कोई आचार्य केवली के दो ही भेद करते हैं - एक तीर्थङ्कर केवली और दूसरा सामान्य केवली। विशेष पुण्यशाली तथा साक्षात् उपदेशादि द्वारा धर्म की प्रभावना करने वाले तीर्थकर होते हैं और इनके अतिरिक्त अन्य सामान्य केवली होते हैं। सामान्य केवली भी दो प्रकार के होते हैं, कदाचित् उपदेश देने वाले और मूक केवली। उपरोक्त सभी केवलियों की दो अवस्थायें होती हैं - सयोग केवली और अयोग केवली। जब तक विहार एवं उपदेश आदि क्रियायें होती हैं तब तक सयोग केवली आयु के अन्तिम कुछ क्षणों में जब इन क्रियाओं को त्याग सर्वथा योग निरोध कर देते हैं तब वे अयोग केवली कहलाते हैं।' एक आचार्य केवलियों के सात भेद स्वीकार करते हैं - पाँच कल्याणक वाले, तीन कल्याणक वाले, दो कल्याणक वाले, सामान्य केवली, मूक केवली, उपसर्ग केवली और अन्त:कृत केवली। यहाँ पर आचार्य का मन्तव्य यह है कि - विदेह क्षेत्र में तीन प्रकार के तीर्थकर होते हैं - एक जो पर्व में ही तीर्थकर प्रकृति का बन्ध करके आते हैं उनके पाँच कल्याणक ही होते हैं, ऐसे तीर्थकर अपने भरत क्षेत्र में भी होते हैं, लेकिन कुछ वहाँ श्रावक अवस्था में तीर्थकर बन जाते हैं। अतः उनके तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक होने से वह तीन कल्याणक वाले तीर्थङ्कर कहलाते हैं। जो मुनि अवस्था में तीर्थकर प्रकृति का बन्ध करते. हैं और उसी भव में तीर्थङ्कर बनते हैं तो उनके ज्ञान और मोक्ष दो कल्याणक होते हैं, इसीलिये वह दो कल्याणक वाले तीर्थङ्कर कहलाते हैं। इस प्रकार विदेह क्षेत्र में तीन प्रकार के तीर्थकर होते हैं। जिन केवलियों के ऊपर मुनि क. पा. 1/1/16 जै. सि. को. भाग 2, पृ. 155 सत्ता स्वरूप 38 175 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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