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________________ कवली कहलाते हैं।' केवली सर्वज्ञ भी होते हैं और आत्मज्ञ भी। समस्त लोक-अलोक के पदार्थों को जानते और देखते हैं इसलिये वह व्यवहार नय की अपेक्षा सर्वज्ञ कहलाते हैं एवं स्वयं अपनी आत्मा को भी जानते हैं अत: निश्चय नय की अपेक्षा आत्मज्ञ कहलाते आचार्य देवसेन स्वामी ने सयोग केवली के स्वरूप को प्ररूपित करते हुए लिखा है कि - घाइचउक्कविणासे उप्पज्ज सयल विमल केवलयं। लोयालोयपयासं. णाणं णिरूपददवं णिच्चं॥ अर्थात् जब घातिया कर्मों का नाश हो जाता है उसी समय भगवान् के सकल निर्मल केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। वह केवलज्ञान लोक-अलोक सबको एक साथ प्रकाशित करता है। वह केवलज्ञान उपद्रव रहित एवं नित्य होता है। ऐसे केवलज्ञान से सहित केवली कहलाते हैं। सयोग केवली के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं कि-जिनका केवलज्ञान रूपी सूर्य की किरणों से समस्त अज्ञान नष्ट हो चुका है, जिससे उन्हें परमात्मा की संज्ञा प्राप्त हुई है और असहाय ज्ञान एवं दर्शन से सहित होने के कारण केवली तथा घातिकर्मों के नाश होने से जिन एवं तीनों योगों से सहित होने के कारण वे सयोगी जिन अथवा केवली कहलाते हैं। इसी सन्दर्भ में आचार्य ब्रह्मदेव सरि सयोग केवली के स्वरूप को प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि - समस्त ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीनों को एक साथ (युगपत्) सर्वथा क्षय करके मेघपटल से निर्गत सूर्य के समान केवलज्ञान की किरणों से लोकालोक प्रकाशक तेरहवें गणस्थानवर्ती जिनभास्कर सयोग केवली कहलाते हैं।" रा. वा. 9/1/23 भा. सं. 665 पं. सं. प्रा. 1/27-28, ध. 1/124-125, ज. ध. मूल पृ. 2270, गो. जी. गा. 63-64 बृ. द्र. सं. टीका 13/35 174 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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