________________ * इस गुणस्थान वाला जीव नियम से 13वें गुणस्थान को प्राप्त होता है। * इस गुणस्थान में नियम से मरण नहीं होता है। * इस गुणस्थान का जघन्य एवं उत्कृष्ट काल अन्तर्महुर्त होता है। * इस गुणस्थान में कम से कम एक जीव तथा अधिक से अधिक 598 जीव हो सकते हैं। * इस गुणस्थान का जघन्य विरह काल एक समय एवं उत्कृष्ट विरह काल 6 माह 13. सयोग केवली गुणस्थान - इस गुणस्थान का नाम 'सजोग केवली' है। योग सहित होने से सयोग तथा केवलज्ञान से युक्त होने के कारण केवली होते हैं। जो केवलज्ञान से युक्त होते हुए भी योग सहित हैं वे सयोग केवली कहलाते हैं। , जिस कारण सब केवलज्ञान का विषय लोक-अलोक को जानते हैं और उसी तरह देखते हैं तथा जिनके केवल ज्ञान ही आचरण है इसीलिये वे भगवान केवली है। घातिया कर्मों का (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय) समूल नाश हो जाने से यह अवस्था प्राप्त होती है। इस गुणस्थान में अनन्त चतुष्टय इन चार कर्मों के अभाव का ही द्योतक है। ज्ञानावरण कर्म के नाश होने से अनन्त ज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से अनन्त दर्शन, मोहनीय कर्म के नाश होने से अनन्त सुख और अन्तराय कर्म के क्षय हो जाने से अनन्त वीर्य प्रकट होता है। केवली सामान्य का लक्षण बताते हुए आचार्य पूज्यपाद स्वामी लिखते हैं कि - जिनका ज्ञान आवरण रहित है वे केवली कहलाते हैं।' इसी परिभाषा का समर्थन कलिकाल सर्वज्ञ स्वरूप आचार्य वीरसेन स्वामी भी करते हैं। इसी प्रकरण में आचार्य अकलंक स्वामी भी परिभाषित करते हुए कहते हैं कि - ज्ञानावरण का अत्यन्त क्षय हो जाने पर जिनके स्वाभाविक अनन्तज्ञान प्रकट हो गया है जिनका ज्ञान इन्द्रिय, काल और दुर देशादि के व्यवधान से परे हैं और परिपूर्ण हैं वे मू. आ. 564 भा. सं. गा. 666-667 स. सि. 6/13/331 173 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org