SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की स्थिति के कारण का निरोध हो जाता है। मनिराज के अप्रमाद होने से, क्योंकि संग हिंसा से आस्रव नहीं होता इसलिये उनके महाव्रतों में कोई भी दोष उत्पन्न नहीं होता है। कि इस गुणस्थान में सम्यक्त्व और चारित्र दोनों की ही अपेक्षा क्षायिक भाव होता है। क्षायिक सम्यग्दृष्टि क्षपक श्रेणी चढ़ता हुआ 10वें गुणस्थान से सीधा 12वें गुणस्थान को प्राप्त कर लेता है। क्षीणमोह गुणस्थान की विशेषतायें * 10वें गुणस्थान के अन्तिम समय में सूक्ष्मलोभ का क्षय हो जाने से स्फटिक मणि के समान बर्तन में रखे हुए जल के समान आत्मा के निर्मल परिणाम होते हैं। वह क्षीणमोह गुणस्थान है। * इस गुणस्थान के उपान्त्य समय में निद्रा, प्रचला का क्षय होता है, एवं अन्त समय में पाँच ज्ञानावरण, 4 दर्शनावरण एवं 5 अन्तराय इस प्रकार 16 प्रकृतियों का नाश होता है। * किन्हीं आचार्यों की अपेक्षा से इस गुणस्थान में प्रारम्भ के दो शुक्लध्यान होते हैं एवं किन्हीं के अनुसार एकत्व वितर्क अवीचार नामक द्वितीय शुक्ल ध्यान होता * द्वितीय शुक्ल ध्यान के बल पर तीन घातिया कर्मों का नाश होता है। * 10वें गुणस्थान के अन्तिम समय में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय कर्म की स्थिति समान हो जाती है तथा वे 12वें गुणस्थान में स्थितिकाण्डक घात के द्वारा बध्यमान स्थिति धीरे-धीरे क्षय होती जाती हैं। अन्त समय में एक साथ तीनों कर्मों का क्षय होता है। * वज्र वृषभ नाराच संहनन वाला ही इस गुणस्थान को प्राप्त कर सकता है। * इस गुणस्थान के अन्त में उन मुनिराज के शरीर से समस्त बादर निगोदिया जीव एवं उनके योनिस्थान नष्ट हो जाते हैं। ध. 14/5,6,92/89 172 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy