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________________ या में उपसर्ग हुआ था वे उपसर्ग केवली कहलाते हैं। जिनके ऊपर ऐसा उपसर्ग कि उनका मरण समीप आ जाता है और आयु के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में केवली मोक्ष भी चले जाते हैं, वह अन्त:कृत केवली कहलाते हैं। जैसे-तीन पाण्डव, गजकुमार मुनि आदि। यहाँ कोई शङ्काकार शङ्का करता है कि केवली भगवान् कवलाहारी अर्थात् आहार को हाथ से उठाकर मुँह में देकर भोजन करते हैं। जब वे समवसरण में विराजमान होते हैं, क्योंकि उनके भी औदारिक शरीर का सद्भाव होता है। अन्य मनुष्य आदि के समान असाता वेदनीय कर्म का उदय होने से कवलाहार होता है। इसका समाधान करते हुए आचार्य लिखते हैं कि - उन केवली भगवान् का शरीर औदारिक नहीं होता अपितु परमौदारिक होता है - 'शुद्धस्फटिकसंकाशं तेजोमूर्तिमयं वपुः। जायते क्षीणदोषस्य सप्तधामुविवर्जितम्।' असाता वेदनीय के उदय से जो कवलाहार कहा है उसका परिहार करते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिस प्रकार किसी बीज को अंकुरित करने के लिये जल सहकारी कारण होता है वैसे ही असाता वेदनीय कर्म के उदय से क्षुधादि कार्य मोहनीय कर्म के उदय के साथ ही सम्भव है और केवली भगवान् के मोहनीय कर्म का तो सर्वथा अभाव है। यदि मोह के उदय का अभाव होने पर भी क्षुधादि परीषह उत्पन्न होते हैं तो वध रोगादि परीषह भी उत्पन्न हो जायेंगे परन्तु भगवान् के भुक्ति और उपसर्ग का अभाव होता है। यदि ऐसा न माना जाय तो उनके अनन्तवीर्य नहीं होगा और क्षुधा की वेदना को न सह पाने के कारण उनके अनंत सुख भी नहीं होगा। और भी कहते हैं कि - रसना इन्द्रिय रूप परिणत मतिज्ञान होने से उनके केवलज्ञान का भी अभाव हो जायेगा जो कि कदापि सम्भव नहीं है। यहाँ पर असाता वेदनीय की अपेक्षा साता वेदनीय कर्म का उदय अनन्तगुणा है। जैसे महान् शर्करा राशि के मध्य में नीम का एक कण होते हुए भी विद्यमानता को प्राप्त नहीं हो पाता। वैसे ही एक और बाधक को कहते हैं - जैसे प्रमत्त संयतादि के वेद का उदय होने पर भी मन्द मोह के उदय होने से स्त्रीपरीषह बाधा नहीं होती, जैसे नवग्रैवेयक आदि अहमिन्द्रों के वेद का उदय होने पर भी मोह का मन्द उदय प्र. सा. 1/20 टीका 176 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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