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________________ इन्हीं परिणामों से आयुकर्म को छोड़कर शेष सातकर्मों की गुणश्रेणी निर्जरा, गुणसंक्रमण, स्थितिखण्डन और अनुभागखण्डन होता है तथा मोहनीय कर्म की बादर कृष्टि एवं सूक्ष्म कृष्टि आदि हुआ करता है। अनिवृत्तिकरण गुणस्थान की विशेषतायें * 9वें गुणस्थान में पूर्वस्पर्द्धक, अपूर्वस्पर्द्धक, बादर कृष्टि, सूक्ष्म कृष्टि ये कार्य होते हैं। जैसे हल्दी की गाँठ से उसका चूर्ण बनने की प्रक्रिया है, उसी प्रकार उपरोक्त क्रियाओं के द्वारा ये कर्म भी अनुभाग शक्ति की हीनता को प्राप्त होते जाते हैं और नष्ट होते जाते हैं। * इस गुणस्थान के 9 भाग होते हैं, जिसमें क्षपकश्रेणी स्थित जीव 36 प्रकृतियों का क्षय करता है। वे निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि, मोहनीय की 20 प्रकृति, नामकर्म की 13 (नरकगति, गत्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चगति, गत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, सूक्ष्म, साधारण, आतप, उद्योत, स्थावर) हैं। * उपशम श्रेणी में स्थित जीव इस गुणस्थान में 20 प्रकृतियों का उपशम करता है। * इस गुणस्थान में 5 प्रकृतियों की बंध व्यच्छित्ति होती है। वे चार संज्वलन और पुरुष वेद हैं। * इस गुणस्थान को बादर साम्पराय भी कहते हैं। 10. सूक्ष्म साम्पराय इस गुणस्थान का पूर्ण नाम 'सुहुम साम्पराइय पविट्ठ सुद्धि संजद' है। साम्पराय का अर्थ कषाय है, जिस गुणस्थान में यह कषाय सूक्ष्म रह जाती है वह ही सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान कहलाता है। इसे सूक्ष्म कषाय, सूक्ष्म लोभ तथा सूक्ष्म सराग गुणस्थान भी कहते हैं। ___सूक्ष्म कषाय को सूक्ष्म साम्पराय कहते हैं। उनमें जिन संयतों की शुद्धि ने प्रवेश किया है उन्हें सूक्ष्म साम्पराय प्रविष्ट शुद्धि संयत कहते हैं।' इस प्रकार का स्वरूप आचार्य वीरसेन स्वामी प्रदर्शित करते हैं। इसी तथ्य को उदाहरण देकर और अधिक पुष्ट ध. पृ. 1/3 164 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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