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________________ 9. अनिवृत्तिकरण गुणस्थान इस गुणस्थान का पूर्ण नाम 'अणियट्टि बादर साम्पराइय पविट्ठ सुद्धि संजद' है। इस गुणस्थान को लघुरूप में 'अणियट्टिकरण' भी कहते हैं। इसका अपर नाम 'बादर साम्पराइय' भी है। जिस प्रकार उत्तरोत्तर अपूर्व - अपूर्व परिणाम होने से आठवें गुणस्थान का नाम अपूर्वकरण गुणस्थान है, उसी प्रकार उत्तरोत्तर जो परिणामों की विशुद्धता होती जाती है वह, शुद्धता बढ़ती जाती है फिर कम नहीं होती। जिसमें परिणामों की शुद्धता निवृत्त न हो सके और बढ़ती ही चली जाय उसको अनिवृत्तिकरण गुणस्थान कहते हैं। उनके प्रतिसमय उत्तरोत्तर अनन्तगुणी विशुद्धि से बढ़ता हुआ एक जैसा ही परिणाम होता है। वे परिणाम अतिविमल ध्यानरूपी अग्नि की शिखाओं के कर्मरूप वन को जला डालते हैं। . अनिवृत्तिकरण का जितना काल है उतने ही उसके परिणाम हैं। इसलिये प्रत्येक समय में एक ही परिणाम होता है। यही कारण है कि यहाँ पर भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणामों में सर्वथा विसदृशता (असमानता) और एक समयवर्ती जीवों के परिणामों में सर्वथा सदृशता (समानता) ही पाई जाती है। यह गुणस्थान दोनों श्रेणियों में होता है। उपशम श्रेणी में इस गुणस्थान के परिणामों द्वारा मोहनीय कर्म की शेष 21 प्रकृतियों में से 20 प्रकृतियों का उपशम हो जाता है और संज्वलन लोभ को भी इस गुणस्थान के अन्त तक सूक्ष्म किया जाता है। क्षपक श्रेणी में मोहनीय की इन 20 प्रकृतियों का क्षय किया जाता है और गुणस्थान के अन्त तक संज्वलन लोभ को सूक्ष्म किया जाता है। - इस गुणस्थान में प्रथम समय सम्बन्धी विशुद्धि सबसे कम है। उससे द्वितीय समय की विशुद्धि अनन्तगुणित है। तृतीय आदि समयों से लेकर अन्तिम समय तक यह अनन्तगणित विशुद्धि चलती रहती है।' प्रा. पं. सं. 1/20, ध. पु. 1/186/17, गो. जी. 56, भा. सं. 649 ध. पु. 1/186/17, गो. जी. 57 ध. 6/221 163 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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