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________________ अपूर्वकरण गुणस्थान की विशेषतायें * अपूर्वकरण गुणस्थान में स्थिति काण्डक घात, अनुभाग काण्डक घात, गुणश्रेणी निर्जरा, गुणसंक्रमण ये चार कार्य होते हैं। * उपशम श्रेणी अथवा क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ इसी गुणस्थान से होता है। * शुक्ल ध्यान का प्रारम्भ इसी गुणस्थान से होता है। इस गुणस्थान में पृथक्त्व वितर्क वीचार नामक प्रथम शुक्लध्यान होता है। ** इस गुणस्थान में जाते समय जब तक निद्रा, प्रचला की बंध व्युच्छित्ति नहीं हो जाती तब तक जीव का मरण नहीं होता है। * इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त एवं जघन्य काल सामान्य से अन्तर्मुहुर्त होता है। * उपशम श्रेणी से गिरते समय अष्टम गुणस्थान में आते ही यदि जीव का मरण हो जाये तो जघन्य काल एक समय भी घटित हो जाता है। * कोई भी मुनि एक भव में तीन बार 8वें गुणस्थान को प्राप्त कर सकता है। अर्थात् उपशमश्रेणी की अपेक्षा दो बार, क्षपक श्रेणी की अपेक्षा तीसरी बार प्राप्त करता है। * कोई भी जीव संसार काल में 9 बार अष्टम गुणस्थान को प्राप्त कर सकता है। कालक्षयापेक्षा। * एकजीव की अपेक्षा इस गुणस्थान का जघन्य विरह काल अन्तर्मुहुर्त तथा उत्कृष्ट विरह काल कुछ कम अर्द्धपुदगल परावर्तन प्रमाण है। * नाना जीवों की अपेक्षा इस गुणस्थान का जघन्य विरह काल एक समय एवं उत्कृष्ट विरहकाल क्षपक श्रेणी की अपेक्षा 6 माह तथा उपशमश्रेणी की अपेक्षा पृथक्त्व वर्ष है। * इस गुणस्थान में 62 प्रकृतियाँ अबन्ध के योग्य होती हैं एवं 36 प्रकृतियों की बंध व्यच्छित्ति होती है। इस गुणस्थान में अनुदय योग्य 50 प्रकृतियाँ हैं एवं 72 प्रकृतियाँ उदय योग्य होती 162 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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