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________________ होते हए भी वह प्रमत्त की संज्ञा को प्राप्त होता है। यहाँ प्रमाद से तात्पर्य यह नहीं है कि वह कोई भी शुभ कार्य करने में अनादर अथवा आलस्य करते हों बल्कि शुद्धोपयोग में अधिक समय नहीं रह पाते हैं तो प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, धर्मोपदेश आदि शुभोपयोग की कियायें करने लगते हैं; इनको ही आचार्यों ने प्रमाद की क्रियायें कहा है। इन क्रियाओं से उनका संयतपना घाता नहीं जाता, क्योंकि वह अपनी भूमिका के अनुसार ही वे क्रियायें करता है, उसको उल्लंघन करके नहीं। T2OEM - संयत का स्वरूप बताते हुए धवलाकार आचार्य वीरसेन स्वामी कहते हैं कि - सम उपसर्ग सम्यक् अर्थ का वाची है, इसलिये सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान पूर्वक जो अन्तरंग और बहिरंग आस्रवों से विरत हैं उन्हें संयत कहते हैं। इसी प्रकार प्रमत्त संयत को व्याख्यायित करते हुए आचार्य लिखते हैं कि - वत्तावत्तपमाए जो वसइ पमत्तसंजओ होइ। सयलगुणसीलकलिओ महव्वई चित्तलायरणो॥ अर्थात् जो पुरुष सकल गुणों से और शील अर्थात् उत्तरगुणों से सहित है, अतएव महाव्रती है तथा व्यक्त और अव्यक्त प्रमाद से रहता है अतएव चित्रल आचरणी है वह प्रमत्त संयत कहलाता है। इसी गाथा को कई आचार्यों के ग्रन्थों में बिना किसी परिवर्तन के ऐसे ही पाया जाता है। आचार्य देवसेन स्वामी ने भी इस गाथा को ऐसे ही ज्यों का त्यों स्वीकार किया है। इसमें प्रमत्तविरत का एकदम सटीक स्वरूप वर्णित है। इस गाथा में जो व्यक्त और अव्यक्त शब्द आये हैं, उन शब्दों से तात्पर्य यह है कि जो स्व और पर या दोनों में से किसी एक के ज्ञान का विषय है वह व्यक्त कहलाता है और जो स्व और पर दोनों में से किसी के भी ज्ञान का विषय नहीं बन पाता, मात्र प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय हो वह अव्यक्त है। ऐसे दोनों प्रकार के प्रमादों से सहित होने के कारण ही यह प्रमत्त की संज्ञा को प्राप्त है। इसमें जो चित्रल आचरण है अर्थात् चित्तल (चीतल) सारङ्ग (हिरण) को कहते हैं इसलिये जो आचरण सारङ्ग के समान अनेक रंग वाला (चितकबरा) होता है वह ही चित्रलाचरण कहलाता है। 2 ध. 1/369 पं. सं. ग्रा. 1/14, ध. 1, गा. 113, गो. जी. का. गा. 33, भा. सं. गा. 601 149 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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