________________ + की रचना की। सन्मतिसूत्र भी इनकी रचना है। श्वेताम्बर मत में भी ये मान्य है। उनके अनसार द्वात्रिंशकायें, न्यायावतार आदि इनकी कृतियाँ हैं। इनके बाद आचार्य पज्यपाद स्वामी हुए। इनका मूलनाम देवनन्दि था। सर्वार्थसिद्धी, जैनेन्द्रव्याकरण, इष्टोपदेश, समाधितंत्र आदि शास्त्रों की रचना की। इनके बाद पात्रकेशरी या पात्रस्वामी नामक आचार्य हए जो महान् दार्शनिक एवं कवि थे। इन्होंने 'त्रिलक्षणकदर्शन' तथा 'पात्रकेशरी स्तोत्र' नामक ग्रंथ रचित किए। इनके बाद आचार्य योगीन्दु 'जोइन्दु' हुए जो एक अध्यात्मवेत्ता आचार्य थे। इन्होंने प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषा में परमात्मप्रकाश, तत्त्वार्थटीका, निजात्माष्टक आदि ग्रन्थों की रचना की। तत्पश्चात् आचार्य विमलसूरि हुए जो दोनों परम्पराओं में मान्य हैं। प्राकृतभाषा के चरितकाव्य के प्रथम रचयिता हैं। 'पउमचरियं' इनकी रचना है। तत्पश्चात् आचार्य ऋषिपुत्र हुए जो ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनकी 'पाशकेवली' एवं 'निमित्तशास्त्र' कतियाँ हैं। भक्तिकाव्य के स्रष्टा कवि के रूप में आचार्य मानतुङ्ग प्रसिद्ध हैं। इनका 'भक्तामरस्तोत्र' दोनों ही परम्पराओं में प्रसिद्ध है। आचार्य रविषेण स्वामी का पौराणिक पुराणकाव्य रचयिता के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये आचार्य लक्ष्मणसेन के शिष्य हैं। इनकी प्रमुख रचना 'पद्मपुराण' है। तदुपरान्त चरितकाव्य के निर्माता के रूप में जटासिंहनन्दी आचार्य प्रसिद्ध हैं। इनकी प्रमुख रचना 'वरांगचरित' है। तत्पश्चात् आचार्य अकलंक हुए जो न्याय में पारंगत, प्रखर तार्किक एवं दार्शनिक थे। इन्होंने तत्त्वार्थवार्तिक सभाष्य, अष्टशती आदि ग्रन्थों की रचना की। तत्पश्चात् एलाचार्य हुए जो आचार्य वीरसेन स्वामी के विद्यागुरु थे। इनका सैद्धान्तिक पाण्डित्य असाधारण था। इनके पश्चात् आचार्य वीरसेन स्वामी हुए जिन्होंने 'षटखण्डागम' की टीका 'धवला', 'जयधवला', 'महाधवला' नाम से परिचित हैं। इन्हें सिद्धान्त में महारत, गणित, न्याय, ज्योतिष, व्याकरण आदि विषयों का तलस्पर्शी पाण्डित्य प्राप्त था। धवला टीका प्राकृत और संस्कृत भाषा में मिश्रित भाषा में 'मणिप्रवालन्याय' से लिखी है। मूलतः सैद्धांतिक, दार्शनिक और कवि थे। इनके शिष्य आचार्य जिनसेन द्वितीय थे, जिन्होंने इनकी शेष धवला टीका पूरी की थी। इन्होंने आदिपुराण, पार्वाभ्युदय और जयधवला का निर्माण किया। आदिपुराण के 42 पर्व जिनसेनाचार्य ने लिखे और शेष पाँच पर्व इनके शिष्य गुणभद्राचार्य ने पूरे किये। सम्पूर्ण ग्रंथ 'महापुराण' के नाम से प्रसिद्ध है। गुणभद्राचार्य ने 'उत्तरपुराण' की भी रचना की। पश्चात् आचार्य विद्यानन्द स्वामी आये। 7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org