________________ आचार्यों से 'कसायपाहुड' की गाथाओं का अर्थ सम्यक् प्रकार ग्रहण करके चूर्णिसूत्रों की रचना की। इन्होंने ही 'तिलोयण्णत्ति' की भी रचना की। इनके बाद उच्चारणाचार्य हुए इन्होंने जिन सुगम तथ्यों की विवरणवृत्ति ‘चूर्णिसूत्रों' में नहीं लिखी थी, उनका स्पष्टीकरण किया। इनके बाद आचार्य शुभनन्दि एवं रविनन्दि आचार्यों से समस्त सिद्धांत ग्रन्थों का अध्ययन करके वप्पदेवाचार्य ने 'षट्खण्डागम' के पाँच भागों पर 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' नामक टीका लिखी और छठे भाग की संक्षिप्त टीका भी लिखी। तदुपरान्त सभी आचार्यों में श्रेष्ठ आचार्य शिरोमणि कुन्दकुन्दस्वामी ने पहली शताब्दी में 84 पाहुड़ों की रचना की जिनमें कुछ ही अष्टपाहुड, पंचागम आदि उपलब्ध हैं। इनका पूर्व नाम पद्मनन्दि है और गुरु का नाम आचार्य जिनचन्द्र तथा दादागुरु का नाम माघनन्दि है। तत्पश्चात् 'मूलाचार' के रचनाकार आचार्य वट्टकेर स्वामी हुए। 'मूलाचार' से मिलती-जुलती गाथायें श्वेताम्बर मत के 'दशवैकालिक' ग्रंथ में भी उपलब्ध हैं। तदुपरान्त आचार्य शिवार्य हुए जिन्होंने 'भगवती आराधना' नामक ग्रंथ रचा। इनके गुरु का नाम सर्वगुप्त बताया गया है। इनके पश्चात् आचार्य उमास्वामी हुए जिनका दूसरा नाम 'गृद्धपिच्छाचार्य' है। इनका संस्कृत भाषा में निबद्ध एकमात्र सूत्रग्रन्थ 'तत्त्वार्थसूत्र' है जो किसी आचार्य द्वारा लिखित प्रथम संस्कृत ग्रंथ है। यह वर्तमान में भी जनसामान्य में सबसे अधिक प्रचलित है। तत्पश्चात् आचार्य कार्तिकेय स्वामी हुए जिन्होंने द्वादश-अनुप्रेक्षा लिखी। .. ___ इन आचार्यों में लगभग समस्त आचार्यों ने अधिकतर शास्त्र, पूर्व में लिखित शास्त्रों की टीका के रूप में लिखे एवं स्वतंत्र शास्त्रों का भी निर्माण किया। उनमें सर्वप्रथम आचार्य समन्तभद्रस्वामी सर्वप्रमुख हैं। ये जैन वाङ्मय में सर्वप्रथम संस्कृत कवि, स्तुतिकार, चिन्तक, दार्शनिक, महाकवीश्वर, सुतर्कशास्त्रामृतसागर, बज्रांकुश आदि नामों से प्रसिद्ध थे। सर्वप्रथम श्रावकाचार भी आपने ही रचा। ये संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं में पारंगत, छन्द, व्याकरण, अलंकार एवं काव्यकोषादि विषयों में निष्णात थे। इनका जन्मनाम शान्तिवर्मा था। इन्होंने 'रत्नकरण्डक श्रावकाचार', देवागम-स्तोत्र, स्वयंभूस्तोत्र आदि की रचना की। इनके पश्चात् आचार्य सिद्धसेन स्वामी हुए जो दार्शनिक और कवि के रूप में बहुत प्रचलित हैं। ये वादिगजकेशरी तथा श्रेष्ठ वैयाकरण भी थे। इनका दीक्षा नाम 'कुमुदचन्द्र' था। 'कल्याण मंदिर स्तोत्र' जो भक्तामर की तरह प्रसिद्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org