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________________ विचार करके लेखन किया गया। इस वाचना की अध्यक्षता नागार्जुन ने की इसलिए यह 'नागार्जुनीय वाचना' एवं बल्लभी में होने से 'बालभी वाचना' कहलायी। पञ्चम वाचना - वीर निर्वाण की 10 वीं शताब्दी में देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में बल्लभी नगर में समस्त श्रमणसंघ के समक्ष यह वाचना हुई। यह वाचना नागार्जनी एवं माथुरी वाचना के संकलन के आधार पर हुई जिसमें दोनों वाचनाओं का समन्वय किया गया तथा जो विषय दोनों में स्वतन्त्र था उसको वैसा ही ग्रहण किया एवं जो महत्त्वपूर्ण भेद थे उन्हें पाठान्तर के रूप में टीका, चूर्णियों में संगृहीत किया गया। वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं वे देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के वाचना के हैं। जैन आगम में दर्शन' नामक अपनी पुस्तक में डॉ. समणी मंगलप्रज्ञा जी ने लिखा है कि उसके पश्चात् उनमें संशोधन, परिवर्धन, परिवर्तन नहीं हुआ है। श्वेताम्बर परम्परानुसार 11 अंग तो आंशिक रूप से विद्यमान हैं, परन्तु 12वाँ अंग का लोप हो गया है। वहीं दिगम्बर परम्परा के अनुसार 11 अंगों का तो लोप हो गया है और 12वाँ अंग आंशिक रूप से विद्यमान है। आचार्य हरिषेणकृत 'बृहत् कथा कोष' पृ. 317-319 में यह उल्लेख है कि 'श्रुतकेवली भद्रबाहु के समय जो 12 वर्ष का दुर्भिक्ष पड़ा उसमें सभी संघ तितर-बितर हो गया और भद्रबाहु स्वामी कुछ शिष्यों को लेकर दक्षिण चले गये। 12 वर्ष बाद जब आये तब साधुवर्ग में शिथिलता देखकर पुन: दीक्षित होने को कहा, क्योंकि उन्होंने आधा वस्त्र धारण कर लिया था। उन्होंने दीक्षा नहीं ली और 'अर्द्धफालक' के नाम से अपना सम्प्रदाय बना लिया, जिसके समर्थक आचार्य स्थूलभद्र थे। वही सम्प्रदाय आगे चलकर 'श्वेताम्बर' कहलाया। श्वेताम्बर की आचार्य परम्परा का प्रारम्भ आचार्य भद्रबाहु से न। होकर स्थूलभद्राचार्य से हुआ जो इनके ही शिष्य थे। जैन साहित्य की परम्परा (शौरसैनी प्राकृत साहित्य) 'कसायपाहुड' और 'षट्खण्डागम' की रचना के बाद आचार्य आर्यमंक्षु और नागहस्ति हुए जो दोनों सम्प्रदायों में मान्य हैं और दोनों आचार्य गुणधर स्वामी के शिष्य एवं यतिवृषभाचार्य के गुरु थे। ये कर्मसिद्धांत के वेत्ता एवं आगम के पारगामी थे। इनको 'कसाय पाहुड' की गाथायें अर्थ सहित स्पष्ट थीं। तत्पश्चात् यतिवृषभाचार्य ने इन दोनों Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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