________________ 12वें अंग का संकलन करने के लिए स्थूलभद्राचार्य की अध्यक्षता में सम्पूर्ण श्रमण संघ आचार्य भद्रबाहु स्वामी के पास नेपाल पहुँचे, जहाँ पर वह महाप्राण ध्यान की साधना के लिए पहुँचे थे। वाचना प्रारम्भ हुई तो सिर्फ स्थूलभद्र ही 10 पूर्वो को ग्रहण कर सके। तभी प्रमादवशात् अपनी ऋद्धि प्रदर्शित करने के लिए स्थूलभद्राचार्य ने सिंह का रूप बनाया जिसकी सूचना आचार्य भद्रबाहु को मिल गई और उन्होंने वाचना देने से मना कर दिया। बहुत अनुनय-विनय करने पर शेष चार पूर्वो की वाचना तो दी परन्तु अर्थ नहीं बताया। अतएव अर्थ की दृष्टि से आचार्य भद्रबाहु ही 14 पूर्वो के ज्ञाता थे, स्थूलभद्राचार्य 10 पूर्षों के ज्ञाता ही हो पाये। आचार्य भद्रबाहु की सल्लेखना के बाद चार पूर्वो का विच्छेद हो गया। 'आवश्यक चूर्णि' के अनुसार स्थूलभद्राचार्य सूत्र रूप से 14 पूर्वो का विच्छेद हो गया। 'आवश्यक चूर्णि' के अनुसार स्थूलभद्राचार्य सूत्र रूप से 14 पूर्वो के धारी थे, परन्तु अन्य किसी को वाचना देने का अधिकार नहीं था। द्वितीय वाचना - 'नन्दीसूत्र' की भूमिका पृष्ठ 16 में उल्लिखित है कि श्रुत संरक्षण का द्वितीय प्रयास सम्राट खारवेल ने ई. पू. दूसरी शताब्दी में उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर समस्त श्रमण संघ को बुलाकर किया था। तृतीय वाचना - आगम का संकलन करने के लिए वीर निर्वाण 825-840 के मध्य में आचार्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में मथुरा में वाचना हुई। जिन-जिन श्रमणों को जितना-जितना श्रुत स्मरण में था उतना एकत्रित किया गया। इस वाचना में कालिकसूत्र एवं पूर्वगतों का कुछ अंश संकलित हुआ। मथुरा में होने से 'माथुरी वाचना' एवं आचार्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में होने से 'स्कन्दिली वाचना' कहलायी। हर्मन जैकोबी ने जैनसूत्र में, मौरिस विण्टरनिट्ज ने 'History of Indian Literature' पेज नं 417 में और दलसुख मालवणिया ने 'आगम युग का जैनदर्शन' पृ. 19 में एवं अन्य कुछ विद्वानों का मत है कि इस वाचना में आगम लिपिबद्ध भी किए गये थे। चतुर्थ वाचना - 'नवसुत्ताणि' नंदी गाथा 36 में उल्लिखित है कि तृतीय वाचना के ही काल में बल्लभी नगर में आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में एक वाचना हुई और समस्त श्रमण संघ के सहयोग से आगम को व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया। जिन श्रमणों को जो स्मरण था उसे लिपिबद्ध किया गया एवं जो विषय विस्मृत लगे उनका पूर्वापर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org