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________________ नयों की उपयोगिता वस्तु अनेक धर्मों का समुदाय है। उसको प्रमाण के द्वारा जाना तो जा सकता है, लेकिन उसका कथन सम्पूर्ण रूप से नहीं किया जा सकता है। कोई भी चाहे जितना चतर वक्ता हो, वह प्रयोजनानुसार एकबार में उसके एक अंश का अथवा धर्म का ही कथन कर सकता है और ऐसा कर ही अपना अभिप्राय प्रकट कर सकता है। नय एक सिद्धान्त है। इसे नयवाद के नाम से अभिहित किया जाता है। अनेकान्त के बाद ही एकान्तवाद का विनाश करने के लिए नयवाद का अन्वेषण किया गया होगा। यही कारण है कि आचार्य देवसेन ने नय को अनेकान्त का मूल कहा है, क्योंकि अनेक नयों का समूह ही अनेकान्त है। उन्होने नय को श्रुतज्ञान का भेद बतलाया है, क्योंकि श्रुतज्ञान के द्वारा ग्रहीत वस्तु के एक अंश को नय ग्रहण करता है। वे कहते हैं कि नयवाद के बिना द्रव्य के स्वरूप का ज्ञान नहीं हो सकता। द्रव्य के ज्ञान के बिना ध्यान नहीं हो सकता है। इसके बिना वस्तु का ज्ञान न होने से कोई सम्यग्दृष्टि नहीं हो सकता। सम्यग्दृष्टि हुए बिना मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है? अर्थात कभी नहीं होगा। नयवाद का ज्ञाता जानता है कि व्यवहार नय से बन्ध होता है और स्वभाव युक्त होने पर मोक्ष होता है, इसलिए नयवादी व्यवहार गौण करके स्वभाव की आराधना करता है। 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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