________________ भावग्राहक द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से कर्म, नोकर्म के मूर्त स्वभाव है, क्योंकि यह दाल का असाधारण गुण है। विजात्यसद्भत व्यवहारनय की अपेक्षा जीव के भी पतस्वभाव है। परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा पद्गल के अतिरिक्त जीवद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और कालद्रव्य के अमूर्तस्वभाव है। विजात्यसद्भूत व्यवहार उपनय की अपेक्षा उपचार से पुद्गल द्रव्य के भी अमूर्तस्वभाव है। परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा कालाणुद्रव्य और पुद्गलपरमाणु के एकप्रदेश स्वभाव है। भेदकल्पनानिरपेक्ष द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और जीवद्रव्य के प्रदेश और प्रदेशवान् का भेद न करके इनको अखण्डरूप से ग्रहण करने पर उनमें बहुप्रदेशत्व गौण हो जाता है। इस अपेक्षा से उनमें एकप्रदेश स्वभाव हो जाता है। भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और जीवद्रव्य के नाना प्रदेश स्वभाव है। इसलिये इन द्रव्यों की अस्तिकाय संज्ञा है। स्वजात्यसद्भूतव्यवहार नय की अपेक्षा से पुद्गलपरमाणु के नाना प्रदेश स्वभाव है, किन्तु कालाणु के उपचार से भी नाना प्रदेश स्वभाव नहीं है, क्योंकि कालाणु में स्निग्ध व रुक्ष गुण का अभाव है एवं वह स्थिर है। अमूर्तिक कालाणु के उपचरित स्वभाव नहीं है। परोक्षप्रमाण की अपेक्षा से और असद्भूत व्यवहार उपनय की अपेक्षा से पुद्गल के उपचार से अमूर्त स्वभाव है। सूक्ष्मपुद्गल परमाणु परोक्षज्ञान के उपचार से अमूर्त स्वभाव है। सूक्ष्मपुद्गल परमाणु परोक्षज्ञान अर्थात् इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य न होने से अमूर्त हैं। शुद्ध द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा द्रव्य में स्वभाव भाव है और अशुद्ध-द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा जीव, पुद्गल में विभाव स्वभाव है। शुद्ध द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा शुद्ध स्वभाव है। अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा अशुद्ध स्वभाव है। असद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा उपचरित स्वभाव मात्र जीव और पुद्गल में है। इस प्रकार नय की अपेक्षा स्वभावों का वर्णन करते हुए आचार्य देवसेन स्वामी कहते हैं कि द्रव्यों का जिस प्रकार का स्वरूप है, वह लोक में व्यवस्थित है। ज्ञान से उसी प्रकार जाना जाता है, नय भी उसी प्रकार जाना जाता है। 95 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org