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________________ कई स्तवनों में उत्कट प्रीति के उदाहरण दिये हैं। कई स्तवन में देवाधिदेव तीर्थंकर की अन्य देवों के साथ तुलना की है। उपाध्यायजी ने सामान्यजन स्तवन में भी भिन्न-भिन्न पद के माध्यम से भिन्न-भिन्न भाव प्रकट किए हैं, जैसे पद 9 में प्रभु के प्रति तीव्र राग, पद 12 में प्रभु का प्रवचन, पद 19 में प्रभु का शरण, पद 54 में प्रभु दर्शन के आनन्द, पद 55 प्रभु के साथ तन्मयता, पद 60 में प्रभु के गुण का ध्यान, पद 61 में परमात्मा के स्वरूप एवं पद 70 के माध्यम से प्रभु के पास याचना के भाव दर्शाए हैं। पंचज्ञान निरूपक उपाध्यायजी ने दो ग्रंथ संक्षिप्त में रचे हैं, जैसे-ज्ञानबिन्दु, ज्ञानार्णव। दार्शनिक साहित्य के साथ-साथ उपाध्याय ने तत्त्वबोधदाय ग्रन्थों की भी रचना की, जैसेअध्यात्ममत परीक्षा का टबो, आनन्दघन अष्टपदी, उपदेश माला, जंबुस्वामीरास, जसविलास, द्रव्यगुणपर्यायरास, जेसलमेरपत्र, ज्ञानसार टबा, तत्वार्थसूत्र का टबा, दिक्पद चौरासी पोल, पंचपरमेष्ठी गीता, बहमगीता, लोकनालि, विचार-बिन्दु, विचार बिन्दु का टबा, शठ प्रकरण का बालावबोध, श्रीपालरास का उत्तरार्धभाग आदि की रचना करके तत्त्वबोधदायक बोध दिया है। षडावश्यक का विषय श्रमण आम्नाय के द्वारा सम्मानित रहा है। उसे भी उपाध्यायजी ने एक स्तवन के माध्यम से लेखनी को संतुलित बनाया है, जैसे-छः आवश्यक स्तवन। समाचारी प्रकरण लिखकर आचार कल्प का सुरस विवेचन किया। अध्यात्म संबंधी ग्रंथों की रचना करके अध्यात्म योगी के नाम की सार्थकता सिद्ध की है, जैसे-ज्ञानसार, अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद् आदि। नयगर्भित शांतिजिन स्तवन एवं व्यवहार एवं निश्चय नय गर्भित सीमंधर स्वामी स्तवन की रचना करके नयवाद को मार्मिक दृष्टि से स्पष्ट किया। 18 पापस्थानक, सुदेव, कुदेव, उपशमश्रेणी, पंचमहाव्रत, अंग, उपांग, आत्मप्रबोध, ज्ञान एवं क्रिया की, प्रतिकर्मण गर्भ हेतु, प्रतिमास्थापक, संयमश्रेणि की, यतिधर्म बत्तीसी, समकित के 67 बोल की . हितशिक्षा आदि सज्जायों की भी रचना करके शेष सभी विषयों के अन्तर्गत कर लिया, यह उनकी महानता है। उन्होंने कोई भी विषय अधूरा नहीं रखा। जिस विषय के बारे में देखें तो कोई प्रकार से उनका साहित्य उपलब्ध होता नजर आयेगा। ___ इस प्रकार उपाध्याय का विशाल वाङ्मय पर पूर्ण अधिकार था। उनको आगम से प्राप्त कोई भी विषय अछूता नहीं था। वे उसमें आकण्ठ डूब गये थे तथा चारों ओर से निरीक्षण करके सूक्ष्म से सूक्ष्मतम पदार्थों को विवेचित करने का पूर्ण प्रयत्न किया। फलतः आज हम भी यह समझते हैं कि उपाध्याय यशोविजय ने सम्पूर्ण वाङ्मय विषय से अज्ञानजगत् को जागृत कर दिया है। साहित्य की विशेषता भारतवर्ष संतों व महात्माओं की भूमि है, ऐसा कहें तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है। राम, कृष्ण, महावीर एवं बुद्ध जैसे पैगम्बरों से लेकर उनकी परम्परा को चलाने वाली महान् विभूतियां समय-समय पर एवं युगों-युगों में इस देश में प्रकट हुईं। भारतवर्ष का यह सौभाग्य है कि अनेक महान् विभूतियों ने अपना त्याग, तप, वैराग्य, ज्ञान, ध्यान, योग, अध्यात्म, ओजस एवं समर्पण से जननी जन्मभूमि की शोभा बढ़ायी है। . 34 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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