________________ हों तो याद रखकर शब्दों को बराबर जमाकर वाक्य कहना, तथ्य दिये गए विषय पर तुरन्त संस्कृत में श्लोक रचना करनी होती है। यशोविजय की स्मरण शक्ति, कवित्व शक्ति और विद्वत्ता से मोहब्बतखान बहुत प्रभावित हुआ। उसने यशोविजय का उत्साहपूर्वक बहुत सम्मान किया, जिससे जिनशासन की बहुत प्रभावना हुई। (वाचक) उपाध्याय पद की प्राप्ति काशी और आगरा में किये हुए विद्याभ्यास के कारण, वाद में विजय प्राप्त करने के कारण तथा अठारह अवधान के प्रयोग से यशोविजय की ख्याति चारों तरफ फैल गई थी। इनकी कवित्व शक्ति उत्तरोत्तर विकसित हो रही थी। इनका शास्त्राभ्यास भी वृद्धिंगत हो रहा था। इन्होंने वीस स्थानक तप की आराधना भी प्रारम्भ कर दी थी। हीरविजय के समुदाय में गच्छाधिपति विजयदेव सूरि के कालधर्म के बाद गच्छ का भार विजयप्रभसूरि पर आया। अहमदाबाद के संघ ने यशोविजय को उपाध्याय पद देने की विनती की। संघ की आग्रह भरी विनती को लक्ष्य में रखकर तथा यशोविजय की योग्यता को देखकर विजयप्रभसूरि ने उपाध्याय की पदवी यशोविजय को महोत्सवपूर्वक संवत् 1718 में प्रदान की। आचार्य पद के योग्य यशोविजय ने प्राप्त हुई उपाध्याय की पदवी को ऐसा सुशोभित किया कि उपाध्याय पदवी रूप में न रहकर उनके नाम की पर्याय बन गयी। उपाध्याय महाराज यानी यशोविजय यह प्रचलित हो गया। उपाध्याय यशोविजय की विद्वत्ता से खंभात के पण्डितों का परिचय ____एक दंतकथा के आधार पर यशोविजय उपाध्याय की पदवी के बाद अपने गुरु और शिष्यों के . साथ खंभात आए। वहाँ आकर थोड़े समय यशोविजय स्वयं के लेखन और स्वाध्याय में मग्न हो गए। व्याख्यान देने का काम दूसरे युवा साधुओं को सौंपा गया। हिन्दू पण्डित व्याख्यान में आकर बीच-बीच में भाषा, व्याकरण, सिद्धान्त आदि के विषय में विवाद खड़ा करके जोर-शोर से साधु महाराज से प्रश्न करते और व्याख्यान का रस भंग कर देते इसलिए एक दिन यशोविजय स्वयं व्याख्यान देने आए। जैसे ही व्याख्यान शुरू हुआ और पण्डितों ने जोर-शोर से प्रश्न पूछना शुरू कर दिया, तब यशोविजय ने मृदु स्वर में कहा-"महानुभावों, आपके प्रश्नों से मुझे बहुत आनन्द होता है, परन्तु आप मेरे पास आकर व्यवस्थित रीति से मुझसे सवाल करें।" उन्होंने प्रवाही सिन्दूर एक कटोरी में मंगवाया और कहा-"हम सब नीचे के होठ पर सिंदूर लगाकर ओष्ठस्थानी व्यंजन (प, ब, भ, म) बोले बिना चर्चा करेंगे। चर्चा के दौरान जो ओष्ठस्थानी व्यंजन बोलेगा, उसके ऊपर का ओष्ठ नीचे के ओष्ठ और सिंदूर वाला हो जाएगा और वह हार जाएगा।" पण्डितों के चेहरे का रंग उड़ गया। उन्होंने शर्त स्वीकार नहीं की, क्योंकि उनके लिए ओष्ठ व्यंजन बोले बिना बातचीत करना अशक्य था। उन्होंने दलील दी कि हम शास्त्रार्थ करने आए हैं, भाषा पर पाण्डित्य बताने नहीं। यशोविजय उनकी मुश्लिक समझ गए। तब यशोविजय ने कहा कि मैंने यह शर्त रखी है इसलिए मुझे तो पालन करना ही चाहिए। आप इससे मुक्त रहेंगे। अब पण्डित एक के बाद एक प्रश्न करने लगे। यशोविजय अपने नीचे के ओष्ठ पर सिन्दूर लगाकर उनके प्रश्नों का उत्तर देते गए। पण्डित शास्त्रचर्चा करते थे, परन्तु उनका ध्यान यशोविजय के ओष्ठ पर ही था। यशोविजय की वाणी अस्खलित बह रही थी, लेकिन उसमें एक भी ओष्ठस्थानी व्यंजन नहीं आया था। शास्त्रार्थ करने वाले पण्डित बहुत देर टिक नहीं सके। वे आश्चर्यचकित रह गए और अंत में उन्होंने हार स्वीकार कर ली। सूर्य के सामने जुगनु का प्रकाश क्या महत्त्व रखता है। 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org