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________________ हुए देवविजयगणि ने पुष्पिका में उल्लेख किया है। इसके आधार पर यशोविजय के एक शिष्य का नाम गुणविजयगणि है। उनके शिष्य का नाम केसरविजयगणि, उनके शिष्य का नाम विनितविजयगणि और उनके शिष्य का नाम देवविजयगणि है, जिन्होंने 1796 में उपयुक्त सज्जाय लिखी है। जैन गुर्जर कवियों (भाग-2, पृ. 224-227) में तत्त्वविजय का उल्लेख है। 1724 में रचित 'अमरदत्त मित्रानंद का रास' एवं 'चौबीसी'-ये दो कतियां उदाहरण स्वरूप ले सकते हैं। तत्त्वविजय ने इसमें अपने को जसविजय के शिष्य के रूप में उल्लेखित किया है। इसके आधार पर कह सकते हैं कि तत्त्वविजय भी यशोविजय के शिष्य थे। पृष्ठ 227 में तत्त्वविजय के भाई के रूप में लक्ष्मीविजय का उल्लेख किया है। न्यायाचार्य ने 125 गाथा का जो सीमंधर स्वामी के स्तवन की रचना की है उनकी एक नकल प्रतापविजय ने की है। वे अंत में अपना परिचय देते हुए लिखते हैं कि वे सुमतिविजय के शिष्य और गुणविजय के प्रशिष्य हैं। यह गुणविजय न्यायाचार्य के ही शिष्य थे। उपाध्याय यशोविजय गुणविजयगणि तत्त्वविजय लक्ष्मीविजयगणि केसरविजयगणि सुमति विजय विनितविजयगणि प्रताप विजय देवविजयगणि प्रतिमाशतक (भाग-1) एवं गत गुरुमाला (पृ. 106, टीका-3), इत्यादि में यशोविजयगणि की शिष्यपरम्परा निम्न है यशोविजयगणि हेमविजय जिनविजय पं. गुणविजयगणि दयाविजय मयाविजय मानविजयगणि मणिविजय माणेकविजय तत्त्वविजय सौभाग्यविजयगणि रूपविजयगणि पं. केसरविजयगणि सुमति विजय पं. विनीतविजयगणि उत्तम विजय देवविजय गणि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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