________________ ने यशोविजय के जन्मस्थल का निर्देश नहीं किया, किन्तु यशोविजय ने अपने गुरु नयविजय के सर्वप्रथम दर्शन कनोडु में किए थे। उस समय उनके माता-पिता कनोडु में रहते थे, यह हकीकत सुनिश्चित है। संभव है कि यशोविजय का जन्म कनोडु में हुआ हो और इनका बालपन भी कनोडु में ही बीता हो। “वर्तमान का कनोडु' उपाध्याय यशोविजय का जन्मस्थान है जो गुजरात का मुख्य धरातल है। भारतदेश की धरा अनेक वीरवर, विद्ववर, वीरांगनाओं से विभूषित रही है और अनेक सत्कार्यों से पूजनीय, प्रशंसनीय रही है। इस धरा के कण-कण तपस्वियों के तेज से, विद्वानों की विद्वत्ता से, योगियों के योग से, दार्शनिकों के दर्शनीय भावों से, सतियों की सतीत्व ऊर्जा से आप्लावित रहे हैं। गुजरात की गौरवशाली धरा का इतिहास इस तथ्य को उजागर करता है कि यहाँ जैन एवं जैनेतर दोनों परम्पराओं में उच्चकोटि के दिग्गज विद्वान् हुए हैं और उनके वैचारिक संघर्ष से तत्त्वविद्या का वाङ्मय सदैव विकस्वर होता रहा है। कनोडु उत्तर गुजरात में महेसाणा से पाटण के रास्ते पर धीणोज गांव से चार मील की दूरी पर बसा हुआ है। जब तक इनके जन्मस्थल के विषय में अन्य कोई प्रमाण नहीं मिलते तब तक इनकी जन्मभूमि कनोडु थी, यह मानने में कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि कनोडु गांव के बारे में और भी कई प्रमाण हैं, जो निम्न हैं साहित्यरसिक मोहनलाल दुलीचंद देसाई ने भी “जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' नामक अपनी पुस्तक के पृष्ठ 625 में यशोविजयजी की जन्मभूमि “कन्होडु-कम्होडु" ऐसा उल्लेख किया है। उन्होंने सुजसवेली भाष का वि.सं. 1990 में सम्पादन किया है और उनकी प्रस्तावना (पृ. 4) में इस गाँव का उल्लेख करते हुए कहा है कि-गुजरात में कलोल एवं पाटण के बीच में कनोडु गांव आया हुआ है। इस आधार पर कितने विद्वानों ने कनोड गांव कलोल के पास आने का उल्लेख किया है। किन्तु जैनाचार्य श्री विजयप्रतापसूरि के प्रशिष्य और विजयधर्मसूरि के आद्य शिष्य साहित्यप्रेमी मुनिश्री यशोविजय ने खुद तलाश करते हुए ऐसा निर्णय दिखाया है कि कनोडु गांव कलोल के पास में नहीं बल्कि धीणोज के पास आया हुआ है। वर्तमान कनोडु गांव में अभी कोई जैनों के घर नहीं हैं।' विद्वान् वल्लभ मुनिश्री पुण्यविजय ने कनोडु के लिए निम्न उल्लेख दिया है-पाटण और महेसाणा की रेलवे लाईन के बीच में धीणोज स्टेशन आया हुआ है। वहाँ से पोणा माईल के अंतरे धोणोज गांव है। वहाँ से दक्षिण-पश्चिम दिशा में दो गाऊ के अंतरे पुण्यतीर्थ कनोडा आया हुआ है। कनोडा में जो शिवालय एवं स्मरणा देवी का मन्दिर है, वह चालुक्ययुगीन शिल्पकला से विभूषित है। माता-पिता एवं बान्धव ___ "सुजसवेली भाष" के आधार पर यशोविजय की माता का नाम सौभागदे (सौभाग्यदेवी) और पिता का नाम नारायण था। वे एक व्यापारी थे। उनके दो पुत्र थे-यशवंत और पदमसिंह। परिवार बड़ा धार्मिक और आस्थावान था। __सुजसवेली भाष (ढाल-1, कड़ी-12) के आधार पर यशोविजय को पदमसिंह नामे बांधव था। सुजसवेली भाष की प्रस्तावना (पृ. 8) में दुलीचंद देसाई ने पदमसिंह को यशोविजय का भाई दिखाया है तो कहीं यशोविजय गणि ने अपनी कितनी कृतियों में पदमविजय को अपना सोदर दिखाया है। www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International