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________________ संवत् सोल अठ्यासिजी रही कुणगिरि चौमासी, श्री नयविजय पंडितवरुजी आव्या कन्होडे उल्लासि। विजयदेव गुरु हाथनीजी बडी दीक्षा हुई खास, संवत् सोल अठ्यासियेंजी करता योग अभ्यास। दीक्षा और बड़ी दीक्षा एक ही वर्ष में संवत् 1688 में दी गई और दीक्षा के समय इनकी उम्र कम थी, यह सुजसवेली भास के आधार पर पता चलता है। उसमें कहा गया है लघुता पण बुद्धि आगलोजी नामे कुंवर जसवंत। इस पंक्ति से मालूम होता है कि दीक्षा के समय इनकी उम्र 8-9 वर्ष की होनी चाहिए तो इस आधार पर इनका जन्म 1679-80 में होना चाहिए। इनका स्वर्गवास डभोई में सं. 1743-44 में हुआ था। इस तरह इनका आयुष्यमान 64-65 वर्ष का होगा, यह मानना चाहिए। चित्रपट के आधार पर 1645-46 के आस-पास इनका जन्म होना चाहिए और सुजसवेली भास के आधार पर इनका जन्म 1679-80 में होना चाहिए। . अब प्रश्न उठता है कि इन दोनों प्रमाणों में से किस प्रमाण को आधारभूत माना जाए। चित्रपट के विषय में तो निश्चित ही है कि उनके गुरु नयविजय के हाथ से तैयार की हुई मूल वस्तु हमें मिलती है। "सुजसवेली भास" की हस्तप्रति उसके कर्ता के हस्ताक्षर की नहीं है, परन्तु बाद में लिखाई हुई है। संभव है कि पीछे से हुई इस नकल में दीक्षा का वर्ष लिखने में कुछ भूल हुई हो। सुजसवेली भास के रचयिता उपाध्याय यशोविजय के समकालीन थे और हस्तप्रति तो उसके बाद की मिलती है, जबकि नयविजयजी गणि तो यशोविजय के गुरु थे। इस दृष्टि से भी देखें तो यशोविजय ने विपुल साहित्य * की रचना की तथा जिन शास्त्रों का अभ्यास किया, उन्हें देखते हुए इतना कार्य करने के लिए 63-64 वर्ष की आयु कम ही होगी। . दूसरी बात, इन्होंने अनशन करके देह को छोड़ा था। अनशन करने की दृष्टि से भी यह उम्र कुछ कम लगती है। वे स्वयं तपस्वी साधु थे, बाल ब्रह्मचारी थे, योग विद्या के अभ्यासी थे, समतारस में डूबे ज्ञानी थे, इसलिए उनका आयुष्य दीर्घ होगा, यह मानना अधिक उचित लगता है। यशेविजय के जन्म के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। ऐतिहासिक वस्त्रपट में वि. सं. 1663 का उल्लेखपूर्वक यशोविजय गणि का निर्देश है। विशेष में यशोविजयगणि ने वि.सं. 1665 में लिखी हुई "हेमधातु पाठ" की हाथपोथी एवं वि.सं. 1669 में लिखी “उन्नप्तपुर स्तवन" की हाथपोथी आज भी मिल रही है। इन उल्लेखों को देखते हैं तो लगता है कि यशोविजयगणि का जन्म वि.सं. 1650 के आस-पास होना मान सकते हैं। मुनिश्री यशोविजय का कहना है कि वि.सं. 1663 में यशोविजय गणि पद से विभूषित हुए। यह बात "तर्कभाषा, दर्शाणभद्र सज्जाय" आदि हाथपोथी के अंत में लिखे उल्लेखों का विचार करते हुए यशोविजय गणि का जन्म समय वि.सं. 1640 से 1650 के बीच का हो सकता है। जन्म स्थान उपाध्याय यशोविजय के जन्मस्थान का उल्लेख हमें 'सुजसवेली भास' के आधार पर प्राप्त होता है। इसके आधार पर यशोविजय का जन्मस्थान गुर्जरदेश के कनोडु नामक गांव में है। यहां भाष्यकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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