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________________ या वाणी स्पृहावान ही वर्तती है। भक्ति की स्पष्टता से कम-ज्यादा, छोटे-बड़े में, सूक्ष्म या स्थूल में, अणु या विशाल में, किसी भी जात का आग्रह नहीं है।" यह प्रतिज्ञा अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय है। सर्वप्रथम हम उनके जीवन और व्यक्तित्व को प्रस्तुत करेंगे। उसके बाद उन बहुआयामी कर्तृत्व का समीक्षात्मक विवरण दिया जाएगा। व्यक्तित्व गृहवास . (प्राचीन साहित्यकार एवं विद्वान् यशोविजय यशप्राप्ति की आकांक्षा से निर्लिप्त रहते हुए स्वान्तः सुखाय और लोक-कल्याण की भावना से ही साहित्य-सृजन करते थे, फलतः उनकी रचनाओं में प्रायः उनके जीवन संबंधी तथ्यों के उल्लेख का अभाव है। अतः शोधकर्ताओं के लिए उनके जीवनवृत्त की जानकारी प्राप्त करना दुष्कर कार्य होता है। उपाध्याय यशोविजय भी इसके अपवाद नहीं हैं। यशोविजय के संबंध में उनके समकालीन मुनियों ने जो उल्लेख किए हैं, उनके द्वारा जो कुछ जानकारी प्राप्त होती है, वही हमारे विवरण का आधार है। जन्म समय (उपाध्याय यशोविजय के जन्मवर्ष की विचारणा के लिए परस्पर भिन्न ऐसे दो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रमाण हैं, किन्तु उनके मन्तव्य भिन्न-भिन्न होने के कारण निश्चयात्मक रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है। 1. वि.सं. 1663 में वस्त्र पर आलेखित मेरुपर्वत का चित्रपट 2. यशोविजय के समकालीन मुनि कांतिविजय कृत "सुजसवेलीभास" नामक रचना। विक्रम संवत् 1663 में यशोविजय के गुरु नयविजय ने स्वयं वस्त्रपट पर मेरुपर्वत का आलेखन किया था। यह चित्रपट आज दिन तक सुरक्षित है। इसकी पुष्पिका में दी गई जानकारी के अनुसार नयविजय ने आचार्य विजयसेनसूरि के कणसागर नामक गांव में रहकर सं. 1663 में स्वयं के शिष्य जसविजयजी (यशोविजय) के लिए इस पट का आलेखन किया। पुष्पिका में लिखे अनुसार कल्याणविजय के शिष्य नयविजय उस समय गणि और पन्यास के पद पर थे, किन्तु जिसके लिए यह पट बनाया, उन यशोविजय का भी उसमें गणी के रूप में उल्लेख है। अब इस चित्रपट के अनुसार विचार करें तो 1663 में यशोविजय गणि थे। सामान्यतया दीक्षा के समय कम-से-कम 10 वर्ष बाद ही गणि पद देने में आता है। (अपवादरूप प्रसंग में इससे कम वर्ष में भी गणिपद देते हैं।) उसके अनुसार सं. 1663 में यशोविजय को गणिपद से सुशोभित किया हो तो सं. 1653 के आस-पास उनकी दीक्षा हुई होगी, यह मान सकते हैं। अगर यह बालदीक्षित हो और दीक्षा के समय उनकी उम्र आठ वर्ष के लगभग की हो तो संवत् 1645 के आस-पास इनका जन्म हुआ होगा, इस प्रकार मान सकते हैं। इनका स्वर्गवास संवत् 1743-44 में हुआ था। अतः संवत् 1645 से संवत् 1744 तक का लगभग सौ वर्ष का आयुष्य इनका होगा, ऐसा पट के आधार पर मान सकते हैं। "सुजसवेली भास" ढाल-1, कड़ी-13 के अनुसार सं. 1688 में नयविजय कनोडु पधारे थे और इसी वर्ष यशोविजय की बड़ी दीक्षा पाटण में हुई Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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