________________ पारिवारिक साम्य के रूप में ही लिया जा सकता है। इस सन्दर्भ में एक और भ्रान्ति का निराकरण आवश्यक है। कुछ आलोचक भाषा-दर्शन को भी तर्कीय अनुभववाद ही मानते हैं, यह पूर्णतः गलत एवं शरारतपूर्ण है। तीय अनुभववाद भी दर्शन को विश्लेषणात्मक मानता है और भाषा विश्लेषण को महत्त्व देता है, किन्तु इस दर्शन का अर्थ सिद्धान्त इसे साधारण भाषा-दर्शन से पृथक् कर देता है। इसके विश्लेषण की विधि भी संकुचित एवं त्रुटिपूर्ण है। विश्लेषी दर्शन व्यापक अर्थ में साधारण भाषा-दर्शन के लिए प्रयुक्त होता है। साधारण भाषा-दर्शन की पृष्ठभूमि अरस्तू के दर्शन में सभी विज्ञान दर्शन के अन्तर्गत आते हैं। किन्तु धीरे-धीरे विज्ञान पृथक् होते गये और अन्ततोगत्वा यह समस्या आती है कि दर्शन का विषय एवं क्षेत्र क्या है? विश्लेषी दार्शनिकों के अनुसार इसमें दर्शन अपने वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करता है, जो इसे सदैव होना चाहिए था और जो यह सदा किसी-न-किसी स्तर पर था अर्थात् भाषा-विश्लेषण। किन्तु यह जानना उपयोगी है कि किन सिद्धान्तों ने साधारण भाषा-दर्शन की उत्पत्ति में योगदान किया। इसके सम्बन्ध में सर्वप्रथम रसल एवं मूर के नाम आते हैं। रसल का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि वाक्यों के व्याकरणात्मक आकार उनके तार्किक आधार नहीं हैं। रसल का उदाहरण देखिए। देवरली का लेख स्फाट है। वाक्य व्याकरण की दृष्टि से सरल वाक्य प्रतीत होता है किन्तु तार्किक दृष्टि से ऐसा नहीं है। तार्किक दृष्टि से यह एक भिन्न वाक्य है और इसका निम्न तार्किक वाक्य में विश्लेषण होता है कम से कम एक व्यक्ति ने देवरली लिखा, अधिक से अधिक एक व्यक्ति ने देवरली लिखा तथा जिसने देवरली लिखा, वह स्फाट है। रसल का यह सिद्धान्त विश्लेषी दर्शन के विकास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। तर्कीय अनुभववाद एवं साधारण भाषा दर्शन में किसी-न-किसी रूप में इसे स्वीकार किया गया है। इन सभी दर्शनों के अनुसार वाक्यों के व्याकरणात्मक रूपों एवं तार्किक क्रियात्मक में तादात्म्य नहीं माना जा सकता। इनके अनुसार वाक्यों का विश्लेषण क्रमशः सरल वाक्यों, मूल वाक्यों एवं सन्दर्भो के अनुसार करना आवश्यक है, तभी उनमें वास्तविक कार्यों का ज्ञान होता है। इसी प्रकार रसल की कृत्रिम भाषा आदर्शभाषा की अवधात्मक तर्कीय अणुवादियों, तर्कीय अनुभववादियों के लिए आदर्श रही, किन्तु साधारण भाषा-दार्शनिकों ने उसे स्वीकार नहीं किया। रसल का भाषा संबंधी सिद्धान्त रसल के अनुसार भाषा सूचना प्रस्तुत करने अथवा कथनों को प्रस्तुत करने का ही माध्यम नहीं है, बल्कि इनसे पृथक् उनके अनेक कार्य हैं। उदाहरणार्थ-किसी सार्जेण्ट मेजर के लिए भाषा का कार्य आदेश देना है, यानी तथ्यों का वर्णन करने या उनके सम्बन्ध में सूचना न देकर केवल दूसरों के व्यवहार को प्रभावित करना है। पर रसल विशेष रूप से वर्णात्मक भाषा में ही रुचि रखते हैं। उनके मत में दर्शन विश्व को समझने का प्रयास है। अतएव स्वाभाविक है कि भाषा में उनकी रुचि इतने तक ही है कि वह उनमें इस कार्य को पूरा करने में सहायक हो। 457 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org