________________ अर्थात् सत्य भाषा से विपरीत असत्य भाषा है, जो कि विराधक भाषा है। असत्य भाषा के इत्यादि चार भेद हैं। आगम में असत्य भाषा के दस भेद हैं निश्रित का क्रोधादि प्रत्येक में संबंध होने से असत्य भाषा के ये दस भेद प्राप्त होते हैं1. क्रोध निश्रित, 2. मान निश्रित, 3. माया निश्रित, 4. लोभ निश्रित, 5. प्रेम निश्रित, 6. द्वेष निश्रित, 7. हास्य निश्रित, 8. भय निश्रित, 9. आख्यायिका निश्रित, 10. उपघात निश्रित। प्रज्ञापना सूत्र में भी असत्य या मृषा भाषा के उपरोक्त ही दस भेद का विवेचन किया गया है। इन सबका विवरण उपाध्यायजी ने किया है 1. क्रोध निश्रित-क्रोधाविष्ट होकर जो कोई अपने लड़के से कहता है कि-"तू मेरा पुत्र नहीं है।" यह वाक्य क्रोधःनिश्रुतमृषा भाषा है। या तो क्रोधाविष्ट व्यक्ति का सर्ववचन क्रोध निःसृत असत्य भाषा स्वरूप ही है। ऐसा उपाध्याय यशोविजय ने कहा है। 2. मान निश्रित-मान कषाय से ग्रस्त जीव बोलता है कि मैं बहुत धनी हूँ, मैं बहुत ज्ञानी हूँ। इत्यादि यह माननिःसृत असत्य भाषा है या माननिःसृत सब वचन असत्य ही है। ऐसा उपाध्यायजी ने कहा है। 3. माया निश्रित-माया अविष्ट पुरुष बोलता है कि-"यह देवेन्द्र है", वह माया-निःसृतमृषा भाषा है या तो मायावी का सर्ववचन माया निःसृत भाषा स्वरूप है। ऐसा यशोविजयजी ने कहा है।" 4. लोभ निश्रित-लोभाविष्ट पुरुष बोलता है कि जैसे कि यह मान माप सम्पूर्ण है, कम नहीं है। इत्यादि यह लोभ निःसृत मृषाभाषा है या तो लोभाविष्ट पुरुष का सर्ववचन लोभ निःसृत मृषा भाषा है। ... 5. प्रेम निश्रित-उपाध्यायजी ने प्रेमाविष्ट व्यक्ति का वचन, जैसे कि-"मैं तेरा दास हूँ", यह वचन प्रेम निःसृत मृषाभाषा रूप है या तो प्रेमी का सब वचन प्रेम निःसृत मृषाभाषा रूप है। 6. द्वेष निश्रित-द्वेष से व्याप्त जीव बोलता है कि जिनेश्वर कृतकृत्य नहीं हैं-इत्यादि, वह वचन द्वेष निःसृत भाषा है। या तो द्वेषप्रयुक्त सर्व भाषा द्वेषनिःसृत मृषाभाषा ही है, ऐसा वाचकवर ने कहा है। 7. हास्य निश्रित-हास्यनिश्रित को परिभाषित करते हुए उपाध्यायजी ने कहा है-प्रेक्षकों को हंसाने . के लिए कुछ वस्तु देखने पर भी मैंने यह नहीं देखा है-ऐसा कहा जाता हुआ वचन हास्यनिश्रित मृषा भाषा है। 8. भय निश्रित-भय से निश्रित से जो विपरीत वचन कहा जाता है, वह भय निःसृत भाषा है। जैसे कि राजा से पकड़ा गया चोर मार-पीट, फाँसी आदि सजा के भय से न्याय की कचहरी में कहता है कि "मैं चोर नहीं हूँ" इत्यादि वचन भयनिःसृत भाषा का उदाहरण है। 9. आख्यायिका निःसृत-झूठी कथा कहने की जो क्रीड़ा है, आदत है, वह आख्यायिका निःसृत भाषा है, जैसे कि भारत-रामायण आदि शास्त्र में ग्रंथित अयुक्त वचन।। 10. उपघात निःसत-उपघात में परिणत होकर जो झूठ वचन कहा जाता है, जैसे कि चोर नहीं है, उसे भी 'तू चोर है'-इत्यादि वचन, वह उपघात निःसृतमृषा भाषा है। 443 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org