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________________ और जिसको उपमा दी जा रही है, वह उपमेय है। मुँह में चाँद की समानता का भान चाँद के ज्ञान के बिना नहीं हो सकता है। अतः उपमा से सापेक्ष कही जाती है। यद्यपि चन्द्रमा और मुख दो भिन्न तथ्य हैं और उनमें समानता भी नहीं है, फिर भी उपमा में ऐसे प्रयोग होते हैं, जैसे-चन्द्रमुखी, मृगनयनी आदि। लोकभाषा में इसे सत्य माना जाता है। वस्तुतः सत्य को इस रस रूपों का संबंध तथ्यगत सत्यता के स्थान पर भाषागत सत्यता से है। भाषा-व्यवहार में इन्हें सत्य माना जाता है। यद्यपि कथन की सत्यता मूलतः तो उसकी तथ्य से संवादिता पर निर्भर करती है, फिर भी अपनी व्यावहारिक उपादेयता के कारण ही इन्हें सत्य की कोटि में परिगणित किया गया है। 2. असत्य भाषा व्यवहार नय से असत्य भाषा का निरूपण करते हुए कहा है कि-जब वादी और प्रतिवादी के अभिप्राय परस्पर विरुद्ध हों, तब आगम से विपरीत जो कथन किया जाए, वह असत्य भाषा है, क्योंकि यह भाषा विराधनी है। व्यवहारनय की यह परिभाषा है कि-जो भाषा विराधिनी होती है, वह असत्य होती है, जैसे कि जीव नित्य है या अनित्य। इस तरह जीव के विषय में विरुद्ध अभिप्राय उपस्थित होने पर आगम से विरुद्ध जीव एकान्त नित्य है अर्थात् जीव सर्वथा नित्य है, यह प्रतिपादन किया जाए, तब वह भाषा व्यवहारनय की दृष्टि में विराधिनी भाषा होने से मृषा असत्यभाषा स्वरूप है। जीव एकान्त नित्य है, यह वचन आगमविरुद्ध इसलिए है कि आगम में जीव नित्यानित्यरूप है, ऐसा तर्कसंगत यथार्थ ." प्रतिपादन उपाध्याय यशोविजय ने भाषा रहस्य में किया है। जैन दार्शनिकों ने सत्य के साथ-साथ असत्य के स्वरूप पर भी विचार किया है। असत्य का अर्थ है-कथन का तथ्य से विसंवादी होना या विपरीत होना। प्रश्नव्याकरण में असत्य की काफी विस्तार से चर्चा है। उसमें असत्य के 30 पर्यायवाची नाम दिये गये हैं। मुख्यतः असत्य वचन के चार प्रकार हैं 1. अलोक-जिसका अस्तित्व नहीं है, उसको अस्तिरूप कहना अलोक वचन है। 2. अवलोप-सहवस्तु को नास्तिरूप कहना अवलोप है। 3. विपरीत-वस्तु के स्वरूप का भिन्न प्रकार से प्रतिपादन करना विपरीत कथन है। 4. एकान्त-ऐसा कथन जो तथ्य के सम्बन्ध में अपने पक्ष का प्रतिपादन करने के साथ अन्य पक्षों या पहलुओं का अपलाप करता है, वह भी असत्य माना गया है। इसे दुर्नय भी कहा गया है। इनके अतिरिक्त जैनों के अनुसार हिंसाकारी वचन, कटु वचन, विश्वासघात, दोषारोपण आदि भी असत्य के ही रूप हैं। भगवती आराधना में असत्य के निम्न चार भेद बतलाये हैं-1. सद्भूत वस्तु का निषेध करना, 2. असद्भूत का विधान करना, 3. अन्यथा कथन (विपरीत कथन), 4. गर्हित, सावद्य और अप्रिय वचन। उपाध्याय यशोविजय ने भाषा रहस्य में असत्यमृषा की व्याख्या एवं भेद को परिभाषित करते हुए कहा है सच्चाए विवरीया, होइ असच्चा विराहणी तत्थ। दव्वाइ चउभंगा, दसहा सा पुण सुए भणिया।।38 / / कोहे माणे माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे अ। हास भए अवखाइ उवधाए णिस्सिया दसमा।।391187 442 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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