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________________ आगे बढकर Ph.D. करने की आज्ञा प्रदान की। हम ऋणि है दादी गुरु उत्कृष्ट चारित्र पालक, सहनशीलता की मूर्ति श्री हीरश्रीजी म.सा. की जिनकी सदैव कृपादृष्टि हम पर बनी रही। हम ऋणि है हमारी परम उपकारी सेवाभावी, सरल स्वभावी ममतामयी गुरुमाता (हमारी संसारी बहन) साध्वीजी श्री भुवनप्रभाश्रीजी म.सा. के जिन्होंने सदा मां का वात्सल्य दिया / हम ऋणि है गुरु शिष्याओं साध्वी श्री चंद्रयशाश्रीजी, साध्वी भक्तिरसाश्रीजी, साध्वीश्री सिद्धांतरसाश्रीजी जिन्होंने वैयावच्च में बहनों जैसा साथ एवं सहकार दिया / हम ऋषि हैं श्री आनंदप्रकाशजी त्रिपाठी प्रोफेसर श्री विश्वविद्यालय-लाडनूं के जिन्होंने सचोट मार्गदर्शन करके कंटीले पथ को फुल की तरह कोमल सुगम एवं सुगंधित बनाया / हम ऋणि है उन सब संघों के युवाओं एवं युवतियों का जिन्होंने अनेक जरुरी ग्रंथों को अनेकानेक ज्ञानभंडारों में से खोज खोज कर विहार में और स्थिरता वाली जगह पर पहुंचाया। जहां धन की जरुरत पडी वहां उदार दिल से सहयोग किया / ललितकुमारजी मंडोत, सत्यविजयजी हरण - मद्रास एवं एस.पी. शाह ने विशेष रूप से अशुद्धि संशोधन एवं पत्र व्यवहार के कठिन कार्य में सहायता की है। .हम ऋणि है उस प्रेस के जिन्होंने पुस्तक इतने सुंदर एवं व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया। पू. साध्वीजी म.सा. ने इस शोध ग्रंथ को लिखकर कखुण (गुजरात) का ही नहीं बल्कि सब जैन संघों, सब धर्मप्रेमीयों का एवं हमारे शेठ कुटुंब का गौरव बढाया है / अंत में भगवान से प्रार्थना करते हैं कि सांसारिक माता, पिता, आचार्य भगवंत, दादी गुरुणी एवं गुरुमैया, सब श्रमण-श्रमणीवृंद, महापुरुषों की और विद्वानों की ऐसी आशिष मिले कि आप शीघ्रातिशीघ्र मोक्षगामी बनो / इसी शुभकामना के साथ... . - हरीलाल, अमृतलाल, बाबुभाई, वाडीभाई, दीपक, राजु डेनिश, उर्विश एवं समस्त शेठ परिवार - कखुण (हाल अहमदाबाद) // ॐ नमो सिद्धम् // प. पू. आचार्य भगवन्त शासनसम्राट् श्रीमद् विजयजयन्तसेनसूरीश्वरजी म. सा. के आज्ञानुवर्ति पू. साध्वीरत्ना भुवनप्रभाश्री जी म. सा. की शिष्या साध्वी भगवंत डॉ. 'श्री अमृतरसाश्रीजी म. सा. ने प. पू. उपाध्याय श्री यशोविजयजी म. सा. के दार्शनिक चिन्तन पर शोध कर उपाध्याय भगवन्त के चिन्तन के वैशिष्ट्य को शब्दों की रचना देकर संघ समाज को एक दुर्लभ कृति प्रदान की है। साध्वी भगवन्त के इस विशिष्ट कार्य की अनुमोदना करते हुए, यह साहित्य संघ समाज के लिए मार्गदर्शक होगा ऐसी कामना गरु आशिष से करता हूँ। शुभाकांक्षी रमेश धाडीवाल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अ.भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद 19 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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