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________________ पिता परमेश्वर (परमात्मा) को प्रार्थना कर भविष्य में उत्तरोत्तर अभ्यास करके शासन को नयी दिशा देंगे / और शासन का नाम रोशन करेंगे / इसी शुभ कामना और शुभेच्छा के साथ अभिनंदन। अध्यापक प्रवीणचंद्र भोगीलाल शेठ राजेन्द्रसूरि ज्ञानमंदिर रतनपोल, अहमदाबाद / શુભ અભ્યર્થના પરમ પૂજય આચાર્ય ભગવંત જયન્તસેનસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાનુવર્તી સાધ્વીજી શ્રી ભુવનપ્રભાશ્રીજી મ.સા.ના સુશિષ્યા સાધ્વીજી મ.સા. અમૃતરસાશ્રીજીએ મહાનિબંધ પર પી.એચ.ડી. ની ઉચ્ચત્તમ પદવી પ્રાપ્ત કરી થરાદ ત્રિસ્તુતિક સંઘ ને ગૌરવ અપાવ્યું છે. આપનો પરિશ્રમ, ધગશ, ઉત્સાહ અને ગુરુભગવંતોના આશીર્વાદથી આપ આ મહાન સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી શક્યા છો. ખૂબ ખૂબ ધન્યવાદ, સંયમ અને જ્ઞાનસાધના. એક સિક્કાની બે બાજુ છે જે આપે સિદ્ધ કરી બતાવ્યું છે. ખૂબ ખૂબ અભિનંદન. નવીનભાઈ દેસાઈ થરાદ अनुमोदना एवं हार्दिक बधाई जिनशासन के नभोमंडल में अनेकों उदयमान प्रदीप्त सितारे अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रकाशित हो रहे हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ऐसे ही दीप्तीमान सितारे हुए / वे ज्ञान के प्रचंड विद्वान थे / उस महान साहित्यकार के साहित्य एवं जीवन पर शोध, कृतित्व का नवनीत समाज के सामने प्रस्तुत करने का भगीरथ कार्य सरल स्वभावी साध्वी भुवनप्रभाश्रीजी की सुशिष्या साध्वी अमृतरसाश्रीजी ने किया है जो वंदनीय एवं स्तुत्य है। ___ इस धरातल पर अनेक महापुरुषों की जन्मभुमि एवं तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि की स्पर्शना करते हुए विभिन्न तपस्याओं के साथ 73 उपवास की अनुठी तपस्या, मासक्षमण वरसीतप जैसी सर्वोपरी तपस्याओं से जीवन को सुगंधित बनाकर गुरुआणा का पालन करते हुए, गुरु बहनों के साथ बहन का स्नेह देकर, संयम जीवन की आचार विचार धारा को समझते हुए अनेकानेक ग्रंथों का अध्ययन करते हुए परम पूज्य सरल स्वभावी, मातृहृदया साध्वी भुवनप्रभाश्री म.सा. की शिष्या श्री अमृतरसाश्रीजी ने उपाध्याय यशोविजयजी के गहनतम साहित्य का अवलोकन करके उनकी जीवनगाथा को गुंथने का कार्य किया है वह प्रशंससनीय है। साध्वीजी द्वारा किया गया यह अनुसंधान सभी धर्मावलंबियों के लिए हितकारी सिद्ध होगा। सर्व जन व्यापी, सर्व जनोपयोगी यह ग्रंथ सबको मोक्ष की राह दिखायेगा / हम ऋणि है परम पूज्य वर्तमानाचार्य राष्ट्रसंत, गच्छाधिपति साहित्य मनीषि, दिक्षा दानेश्वरी बचनसिद्ध आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. के जिन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में 18 For Personal & Private Use Only Jain Education Interational www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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