________________ 208. 209. 210. 211. 212. 213. 214. 215. 216. 217. 218. * 219. 220. 221. 222. . न्यायप्रदीप, पृ. 99 जैनदर्शन : मनन और मीमांसा, पृ. 385 व्यवहारानुकुल्यातु प्रमाणानां प्रमाणता। नान्यथा बाध्यमानानां ज्ञानानां तत्प्रसंगतः।। -लघीयस्त्रयी, 3.6.70 लौकिक सम उपचार प्रायो विस्तृतार्थोव्यवहार। -तत्त्वार्थभाष्य, 1/35 भिक्षुन्यायकर्णिका भेदं प्राधान्यतोऽन्विच्छन् ऋजुसूत्रनयो मतः। -लघीयस्त्रयी, 3.6.71 नयवाद, पृ. 13 अभिधान राजेन्द्रकोश, पृ. 2/770, 4/1856; रत्नाकरावतारिका, 7/28 अभिधान राजेन्द्रकोश, 2/770 न्यायप्रदीप, पृ. 100 नयचक्रसार, पृ. 139 जैन तर्कपरिभाषा, पृ0 185 नयवाद, पृ. 12 अनेकान्त, नय, निक्षेप और स्याद्वाद, पृ. 29 नयवाद, पृ. 14 वही, पृ. 15 अनेकान्त, नय, निक्षेप और स्याद्वाद, पृ. 29 अभिधान राजेन्द्रकोश, पृ. 2/770, 7/366-369; रत्नाकरावतारिका, 7/32-333; विशेषावश्यक भाष्य, 2227-2235; स्थानांग, 7/3; नयोपदेशतर्कणा, 33-35 नयचक्रसार, पृ. 141 नयवाद, पृ. 16 जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 186 अनेकान्त, नय, निक्षेप और स्याद्वाद, पृ. 29 अभिधान राजेन्द्रकोश, पृ. 4/1857, 7/417; स्थानांग, 3/3; रत्नाकरावतारिका, 7/36-37; विशेषावश्यक भाष्य, 2236-2250 नयवाद, पृ. 27 वही न्यायप्रदीप, पृ. 102 नयचक्रसार, पृ. 141 जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 189 223. 224. 225. 226. 227. 228. 229. 230. 231. 232. 233. 234. 235. 318 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org