________________ 181. जावडा 184. 186. 188. 190. 178. तिहं सनयाणं। -अनुयोगद्वार, 148 179. जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 195 180. वही, पृ. 195 जावइया वयणवहा, तावइया चेय होंति णयवाया। जावइया णयवाया, तावइया चेव परसमया।। -सन्मतितर्क प्रकरण, 3/47 182. स्थानांग, 7/552; तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1/33 183. सन्मतितर्क नय-प्रकरण 1/34-35 185. अनेकान्त, नय, निक्षेप और स्याद्वाद, पृ. 27 भिक्षुन्यायकर्णिका 187. जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 180 संकल्पमात्रग्राही नैगमः। -सवार्थसिद्धि, 1/33 189. स्थानांग, 3/3; अभिधान राजेन्द्रकोश, 4/2157; विशेषावश्यक भाष्य, 2186-87 तत्त्वार्थभाष्य, 1/35, पृ. 61, 62 191. अभिधान राजेन्द्रकोश, पृ. 4/2157; विशेषावश्यक भाष्य, 2188 192. वही, पृ. 4/1856; रत्नाकरावतारिका, 7/7-10 193. तत्त्वार्थसूत्र, 1/35 एवं उस पर भाष्य, पृ. 61-62 न्यायप्रदीप, पृ. 99 195. अभिधान राजेन्द्रकोश, 4/1856, 7/73; तत्त्वार्थभाष्य, 1/35 जैन सिद्धान्त दीपिका जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 183 नयवाद, पृ. 9 199. ___ अभिधान राजेन्द्रकोश, पृ. 4/1858; रत्नाकरावतारिका, 7/14-16, 19-20 200. अभिधान राजेन्द्रकोश, 7/73-74; द्रव्यानुयोगतर्कणा, 6/12 अतो विधिपूर्वकमवहरणं व्यवहारः। -तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1/33/6 . 202. जैन सिद्धान्त दीपिका 203. अभिधान राजेन्द्रकोश, पृ. 4/1856; रत्नाकरावतारिका, 7/23 204. वही, 7/24 नयरहस्य 206. जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 184 207. नयवाद, पृ. 11 194 196. 197. 198. 201. 205. 317 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org