________________ 149. 150. 151. 152. 153. 154. 155. 156. 157. 158. 159. 160. 161. 162. 163. नीयते परिच्छिद्यतेऽनेनास्मादिति वा नयः / अनंतधर्मात्मकस्य वस्तुन एकांशपरिच्छितौ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, 4/1842 अनन्तधर्मोत्मकस्य वस्तुनो नियतैकधर्मात्मकावलम्बनेन प्रतीतो प्रापर्णे। -वही नयंतीति नया वत्थुततं अवबोहगोयरं पावयंति ति। -अ.रा., 4/1852 अनिराकृतप्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः। -प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. 606 अभिधान राजेन्द्रकोश, भाग-4, पृ. 1892; विशेषावश्यक भाष्य, 3098 जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 194 आवश्यकनियुक्ति, गाथा 759 कषायपाहुड, पृ. 139-148 अभिधान राजेन्द्रकोश, 4/2462; आवश्यक मलयगिरि, 1/2 वही, 4/2466; पंचाध्यायी, 1/518 वही, 4/2467; पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक 31-32 की टीका; रत्नाकरावतारिका परिच्छेदन वही, 4/2467; आवश्यकमलय गिरि, 1/2 वही, 4/2471; उत्तराध्ययन सूत्र सटीक वही, 4/1856; पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक 31-32 की टीका जैन तर्कपरिभाषा, पृ. 178 नयरहस्य, पृ. 34 अभिधान राजेन्द्रकोश, 5/211 . वही, 5/211; नियमसार, गाथा 14 की टीका वही, 5/211; फ्रापनासूत्र-5; पद पंचास्तिकायसंग्रह 10 की टीका, जिनागमसार, पृ. 459, 460 वही, 5/211; आवश्यक मलयगिरि-1, अध्ययन पंचाध्यायी, 1/165 वही, 5/229; रत्नाकरावतारिका परिच्छेद-7; नियमसार, गाथा-19 की टीका पंचाध्यायी, 1/519; जिनागमसार, पृ. 682 श्री मोक्षशास्त्र, 1/38 की टीका, पृ. 93 अभिधान राजेन्द्रकोश, 5/229; सन्मति तर्ककाण्ड वही, 5/229; रत्नाकरावतारिका परिच्छेद-7 नयरहस्य, पृ. 35 जैनतर्कपरिभाषा, पृ. 1/178 भगवतीसूत्र, 18/6 (1) अनुयोगद्वार, 156 (2) स्थानांग, 7/552 164. 165. 166. 167. 168. 169. 170. 171. 172. 173. 174. 175. 176. 177. 316 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org