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________________ कोटि कोटि नमन एवं बधाई ! प.पू. राष्ट्रसंत, साहित्य मनीषी, मधुर प्रवनचकार आचार्य देवेश श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी पूज्य साध्वीजी भुवनप्रभाश्रीजी म.सा. की विद्वान सुशिष्या पूज्य साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. के चेन्नई-चातुर्मास के दरम्यान जैनोलोजी में एम.ए. के कोर्स हेतु एवं आपश्री की 73 उपवास की महामृत्युंजयी उग्र तपस्या के वैयावच्च हेतु मुझे एवं मेरी धर्मपत्नी श्रीमती मंजुलादेवी को आपश्री की निश्रा का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था / आपश्री की विलक्षण विद्ववत्ता, अतुलनीय कार्यक्षमता, अपार गंभीरता, ज्ञान की उज्जवलता और तप-त्याग की तेजोमयता देख कर हम अचंमित रह गये थे / आपश्री के पठन-पाठन हेतु विभिन्न स्थानों से साहित्य उपलब्ध कराने एवं पूज्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म.सा. की जीवनी एवं रचनाओं पर शोधहेतु विभिन्न ज्ञान भण्डारों से साहित्य उपलब्ध कराने का जो सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ, वो अविस्मरणीय है और हमारे हृदय-पटल पर पत्थर की लकीर की तरह सदैव अंकित रहेगा। आपश्री की सानिध्यता से ही हमें पूज्य महोपाध्याय पर शोध की गहनता, महानता, विशालता आदि का पता चला / महोपाध्यायजी स्वयं ज्ञान के सागर थे, उनकी रचनाओं को समझने तो क्या पढने में भी हमें अत्यंत कठिनाई महसूस हो रही थी, और पूज्य साध्वीवर्याश्रीजी इन पर शोध कार्य कर रही थी, यह बिलकुल ही हमारी अल्पबुद्धि से परे था / संपूर्ण-चातुर्मास के दौरान एवं उस महामृत्युंजयी तप के दरम्यान हमें उनके चेहरे पर कभी थकान के दर्शन नहीं हए / सदैव मस्कान बिखेरती साध्वीवर्या, मन में अरिहंत प्रभु का जाप करती, अपने इस भगीरथ कार्य में तल्लीन, मानों ज्ञान के अथाह सागर में गोते लगा रही थी और सागर की अनन्त गहराईयों से बेशकीमती हीरे-रूपी ज्ञान के झिलमिलाते मोती समस्त जैन समाज को मुहैया करा रही थी। पूज्य साध्वीवर्याश्री इस अनमोल शोध की चमक सदियों तक जैन समाज के देदिप्यमान क्षितिज पर छायी रहेगी और हम प्रभु से हार्दिक प्रार्थना करते हैं कि पूज्यश्री को अनवरत आरोग्य एवं चिरायु की प्राप्ति हो और जिनशासन की जाहोजलाली के शुभ कार्य आपश्री के करकमलों से सुसंपन्न होते रहें। जैन ललित के. माण्डोत श्रीमती मंजुला देवी माण्डोत मद्रास 14 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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