________________ अर्थात् सरलपने अतीत अनागत की गवेषणा नहीं करता हुआ वर्तमान समयवर्ती पदार्थ के पर्याय मात्र को प्रधान रूप से माने, उसे ऋजुसूत्र नय कहते हैं, जैसे-ज्ञानोपयोग सहित जो ज्ञानी, दर्शनोपयोग सहित जो दर्शनी, कषाय उपयोग सहित जो कषायी, समता उपयोग वाले को सामायिकी-यह ऋजुसूत्र नय का मन्तव्य है। उपरोक्त ऋजुसूत्र नय की परिभाषा उपाध्याय यशोविजय ने जैन तर्क परिभाषा में दी है। नयवाद में ऋजुसूत्र नय की व्याख्या देते हुए कहा है कि ऋजु-प्राज्जलं वर्तमानक्षणं सूत्रयतीति ऋजुसूत्रः / 220 ___जो विचार वर्तमानकाल को अवलम्बे, वह ऋजुसूत्र नय अथवा ऋजु यानी सकल-सरलता से वस्तु का जो निरूपण, वो ऋजुसूत्र नय। ऋजुसूत्रनय संग्रहनय से विपरीत विशुद्ध क्षणिकवादी है। सिद्धसेन दिवाकर ने इसे पर्यायार्थिक नय . की विशुद्ध प्रकृति कहा है। यद्यपि व्यवहारनय भी भेदमुख्य दृष्टि है परन्तु उसके द्वारा गृहीत भेद भी एक दृष्टि से अभेद का सूचक है। ऋजुसूत्र नय में व्यवहार नय की अपेक्षा भी भेद प्रमुख हो जाता है, क्योंकि वह कालगत अभेद को भी स्वीकार नहीं करता। व्यवहार नय की दृष्टि से तुला अतीत में भी तुला थी, निकट भविष्य में भी तुला ही रहेगी, पर ऋजुसूत्र नय के अनुसार तुला तभी तुला है जब उसमें तोला जाता है। सामान्य भाषा में हम कहते हैं-पलाल जलता है। 'पलालदाह' यह वस्तुतः ऋजुसूत्र नय से ठीक नहीं। ऋजुसूत्र नय के अनुसार जब पलाल है तब जलता नहीं और जब जलता है तब . . पलाल नहीं। इस प्रकार ऋजुसूत्र दृष्टि से क्षणक्षयवाद की सिद्धि होती है, जिसकी तुलना बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद से कर सकते हैं। अन्तर केवल इतना है कि बौद्ध दर्शन उस पर्याय में अनुस्यूत द्रव्य का अपलाप करता है जबकि यह नय पर्याय को मुख्यता देता हुआ भी द्रव्य का निराकरण नहीं करता। बौद्ध दर्शन क्षण की सिद्धि के लिए स्थायी सत्ता का खंडन करता है। अतः वह ऋजुसूत्र-नयाभास है। कौआ काला है-इस वाक्य में कौए और कालेपन की जो एकता है, उसकी उपेक्षा करने के लिए ऋजुसूत्रनय कहता है कि कौआ कौआ है और कालापन कालापन है। कौआ और कालापन भिन्न-भिन्न / अवस्थाएँ हैं। यदि कालापन और कौआ एक होते तो भ्रमर भी कौआ हो जाता, क्योंकि वह काला है। ऋजुसूत्र क्षणिकवाद में विश्वास रखता है, इसलिए प्रत्येक वस्तु को अस्थायी मानता है। जिस प्रकार कालभेद से वस्तुभेद की मान्यता है, उसी प्रकार देश-भेद से भी वस्तुभेद की मान्यता है। भिन्न देश में रहने वाले पदार्थ भिन्न हैं। इस प्रकार ऋजुसूत्र प्रत्येक वस्तु में भेद ही भेद देखता है। यह भेद द्रव्यमूलक न होकर पर्यायमूलक है। अतः यह नय पर्यायार्थिक है। ऋजुसूत्र नय के दो प्रकार हैं-शुद्ध ऋजुसूत्र और अशुद्ध ऋजुसूत्र नय।। शुद्ध ऋजुसूत्र नय के अनुसार एक क्षणवर्ती अर्थपर्याय सत्य है अतः द्रव्य का लक्षण उत्पाद व विनाश है। अशुद्ध ऋजुसूत्र चक्षुग्राह्य व्यंजन पर्याय को भी ग्रहण करता है, जो दीर्घकालिक होती है। आगम में एक स्थान पर-उज्जुसुअस्स एगे अणुवउते एगं दव्वावस्सगं पुहतं णेच्छइ। ऐसा सूत्र आता है। इस सूत्र का विरोध न हो इसलिए जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने ऋजुसूत्र नय को द्रव्यार्थिक नय में गिना है। लेकिन महावादी श्री सिद्धसेन दिवाकर आदि तार्किकों ने ऋजुसूत्र नय को पर्यायार्थिक नय में गिना है। इन दोनों के बीच विरोध नजर आता है। फिर भी पूर्व में कथ्यानुसार द्रव्यार्थिक नय 299 Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org