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________________ तन की तृष्णा तनिक है, तीन पांव के सैर। मन की तृष्णा अमित है, गिलै मेर का मेर।। मानव ने अपनी तृष्णा शान्ति के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया है। आगे आने वाली पीढ़ियों के अधिकार को छीन लिया है। पर्यावरण के सन्तुलन के सन्दर्भ में भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त अनर्थ दण्ड विरति व्रत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आवश्यक हिंसा को छोड़ा नहीं जा सकता है किन्तु अनावश्यक को रोका जा सकता है। अनेकान्त का चिन्तन है कि यन्त्रों का भी नियंत्रित विकास हो, जिससे सन्तुलन बना रहे। 15 कर्मादान विरति, 25 क्रियानिवृत्ति-ये पर्यावरण सुरक्षा के सूत्र हैं। राजनैतिक विचारों के हल में अनेकान्त / अनेकान्त का सिद्धान्त केवल दार्शनिक ही नहीं अपितु राजनैतिक दूराग्रहों को भी दूर करके विचारों को सुलझाता है। डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं कि आज के राजनैतिक जीवन में स्याद्वाद के दो व्यावहारिक फलित वैचारिक सहिष्णुता और समन्वय अत्यन्त उपादेय हैं। मानव जाति ने राजनैतिक जगत् में राजतन्त्र से प्रजातन्त्र तक की जो लम्बी यात्रा तय की है, उसकी सार्थकता स्याद्वाद दृष्टि को अपनाने में ही है। विरोधी पक्ष द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर उसके द्वारा अपने दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना आज के राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस दुनिया में कोई पूर्ण नहीं, सभी अधूरे हैं, कोई निरपेक्ष नहीं, सभी सापेक्ष हैं, इसलिए एक-दूसरे के विचारों को समझकर उनका सम्मान करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। अनेकान्त का यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि एक मुख्य होगा, शेष सारे गौण हो जायेंगे। इसी आधार पर सापेक्षता का विकास हुआ। जो मुख्य होगा, वह दूसरों की अपेक्षा रख करके चलेगा। वह निरपेक्ष होकर नहीं चलेगा। सब उसके साथ जुड़े रहते हैं और वह सबको अपने साथ जोड़े रखता है।108 अतः अनेकान्तवादी सबके विचारों को समझकर समय-समय पर उनका भी सम्मान करता है। अनेकान्तवाद में वह ताकत है कि वह दुश्मन को भी दोस्त बना लेता है। राज्य-व्यवस्था का मूल लक्ष्य जन-कल्याण है अतः अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के मध्य एक संतुलन स्थापित करके आपस के विचारों को समाप्त किया जा सकता है। . वैसे ही अर्थतंत्र, शिक्षा जगत, वर्णव्यवस्था, न्यायालय के फैसलों में भी, विश्वशांति स्थापना में, झगड़ा शमन में भी अनेकान्तवाद का आश्रय लिया जाता है। पारिवारिक संघर्षों में अनेकान्त परिवार समाज की मुख्य इकाई है। इसके आधार पर ही समाज का निर्माण होता है। परिवार में व्यक्ति अनेक संबंधों में बंधा हुआ है। उन आपसी संबंधों में यदा-कदा खींचातान चलती रहती है। जीवन और वातावरण अशान्त बन जाता है। /प्रायः परिवार में संघर्ष भी एक-दूसरे के विचारों को नहीं समझने के कारण तथा अपने विचार को पकड़कर रखने के कारण होते हैं। फ्लैट को फर्नीचर से सजाने का काम तो पैसे कर देते हैं, परन्तु घर को प्रसन्नता से हरा-भरा बनाने का काम प्रेम के बिना सम्भव नहीं है। प्रेम अनेकान्तदृष्टि के बिना टिक नहीं सकता है। बैलगाड़ी के युग और कम्प्यूटर युग में विरोध तो है ही। पिता बैलगाड़ी के युग का और पुत्र कम्प्यूटर के युग का, सास जूनवाणी विचारों की और बहु आधुनिक विचारों की। अतः 281 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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