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________________ અભિનંદન વર્તમાન આચાર્યદેવ પ.પૂ. જયંતસેનસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાનુવર્તી સાધ્વીજી શ્રી ભુવનપ્રભાશ્રીજી મ.સા.ના સુશિષ્યા સાધ્વીજી અમૃતરસા મ.સા. દ્વારા શોધ નિબંધ પર પી.એચ.ડી.ની ડીગ્રીથી સન્માનિત થયાં તે બદલ આપશ્રીને ખૂબ ખૂબ અભિનંદન. સમસ્ત ત્રિસ્તુતિક જૈન સંઘ અને થરાદ ત્રિસ્તુતિક જૈન સંઘ આપની આ સિદ્ધિ માટે ગૌરવ અનુભવે છે અને આપને ધન્યવાદ પાઠવે છે. સંઘવી નટવરલાલ ડાયાલાલ ટ્રસ્ટી મેનેજર श्री जैन श्वेता१२ भू.पू. संघ, थ६ (बनासsist) मंगल कामना प्रतिष्ठा में साध्वीजी भगवन्त श्री अमृतरसाश्रीजी सा., अमदावाद प्रसन्नता का ज्वार मन में आया, आपके शोध प्रबन्ध को स्वीकार किये जाने के समाचार से / विबुध कहे जाने वाले श्री नयविजयजी म.सा. के शिष्य उपाध्याय यशोविजयजी/यशविजयजी के सम्बंध में शोध प्रबन्ध तैयार करना दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की दिव्य आशीर्वाद वर्तमान शासनसम्राट श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. की व दिवंगत साध्वीजी 'भगवन्त श्री भुवनप्रभाश्रीजी की कृपा से सम्भव हुआ है। आपका अपना श्रम इन सभी के सहारे से आपको इन स्थान तक लाया है। झील्या जे गंगाजले ते छिल्लर जल नवि पेसे रे, जे मालति फुले मोहिया ते बावल जई नवी बेसे रे / के शब्दों से तीर्थंकर परमात्मा महावीरदेव की वन्दना करके वाचक यश श्री यशोविजयजी म.सा. ने साधक की उत्कृष्ट स्थिति का आकलन किया है। श्रद्धा का भाजन गंगाजल व मालती के सुगन्धित पुष्प ही हो सकते है, गड्डे में भरा जल व बबुल का वृक्ष नहीं वाचक जस की वर्तमान जिन चौबीसी व विहरमान जीन वीश तिर्थंकर परमात्मा की श्रेष्ठता बताते हैं / ऐसा वर्तमान काल में अभिधान राजेन्द्र कर्ता विश्वपूज्य प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने विक्रम संवत 1928 में राजगढ नगर में वर्तमान जिन चौबीसी में किया है। श्री वासुपूज्यजी के स्तवन में "देखो देख ओ दीनदयाला सुर सानिध्य नहीं साहे रे" बताते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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