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________________ की थी और उन्हें चौदह पूर्वधर ज्ञाताश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी म.सा. के लघुभ्राता की उपमा भी दी गई थी / संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिन्दी, राजस्थानी आदि अनेक भाषाओं में ग्रंथो की रचना की थी / पूज्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी लगभग 300 वर्ष पहले भारत में अवतरित हये थे और पूज्य श्री आनन्दघनजी म. उनके समकालिन विद्वान थे / आपश्री पूज्य आनन्दघनजी म. की चौवीसी पूर्ण की थी / आपश्रीने पू. श्री विनयविजयजी म. द्वारा प्रारंभ किये गये श्रीपाल रास को पूर्ण किया था / आपश्री की गजब की ग्रंथरचना के चलते आपको "आगमघर" की उपाधि से विभूषित किया गया था / जिसका अर्थ है कि इनके द्वारा रचित गुजराती ग्रंथों को अगर पढ़ा जाये तो उसमें संपूर्ण 45 आगम का सार प्राप्त हो जाता है। आपश्री की स्मरणशक्ति इतनी गजब की थी कि अगर आपके समक्ष 2000 प्रश्न रखे जाये तो कौन सा प्रश्न किस श्रृंखला में पूछा गया था उसे आप श्री तत्क्षण बता देते थे। इसीलिये आपश्री को "सहस्त्रवधान" की अद्भूत क्षमता वाले विद्वान भी कहा जाता है। ऐसे विलक्षण ज्ञान के धारक महोपाध्याय श्री यशोविजयजी की जीवनी एवं रचनाओं पर शोध करना एक अत्यंत कठिन कार्य है और साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. ने अपनी विलक्षण ज्ञानोपासना और अथक परिश्रम से इस कार्य को पूर्ण किया है तो वे अनंतसाधुवाद के पात्र हैं। अपने ज्ञान अपनी शक्ति और सामर्थ्य का शासनोपयोगी कार्य कर आपश्रीने ज्ञान के अथाह क्षेत्र में जो डंका बजाया है / उसकी ध्वनी-प्रतिध्वनी आने वाले अनेक वर्षों तक जिनशासन के यशस्वी पटल पर गुंजायमान रहेगी / हम परम पिता परमेश्वर एवं शासन देवी से हार्दिक प्रार्थना करते हैं कि आपश्री को ज्ञानोपासना की अथाह शक्ति दे और ज्ञानोपासना की आधारबूत काया को चिरकाल की आरोग्यता प्रदान करें ताकि आप श्री शासनोपयोगी ऐसे विलक्षण कार्य भविष्य में भी करती रहे / __ अजीब योगानुयोग है कि पू. साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. जन्म भी अहमदाबाद में हुआ था और महोपाध्याय पूज्य श्री यशोविजयजी म.सा. की जीवनी एवं रचनाओं पर आपश्री द्वारा शोध की पूर्णता भी अहमदाबाद नगर में चातुर्मास के दौरान हुई / पुनः पुनः आपश्री के चरणकमलों में नतमस्तक होते हुए हम आपश्री के चिरकाल की आरोग्यता एवं ज्ञानोपासना की शुभमंगल कामना करते हुए आपश्री को कोटि कोटि वंदन करते .. श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी जैन ट्रस्टी गण विमलचंद वजावत सचिव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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