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________________ शुभ संदेश प.पू. राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्रीमद् विजय जयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती प.पू. साध्वीजी श्री भुवनप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. ने महोपाध्याय यशोविजयजी म.सा. के दार्शिनिक चिंतन का वैशिष्ट्य सबजेक्ट में साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. ने Ph.D. करके डोक्ट्रेट की डीग्री प्राप्त की इस उपलक्ष में आपको अ.भ. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद परिवार की तरफ से हादिक हादिक बधाई और खुब अनुमोदना शुभकामना देते है। आपसे यही उम्मीद रखते है कि निरंतर आगे बढे और ऊँचाईयों को छुयें और गुरुगच्छ और श्री संघ के प्रति समर्पित भाव रखें / यही हमारी शुभकामना है। आपका अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र नवयुवक परिषद नेल्लोर शांतिलाल रामाणी श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी जैन ट्रस्ट 9, एकाम्बरेश्वर अग्राहरम्, चैन्नई-६००००३ हार्दिक वन्दन एवं बधाई श्री त्रिस्तुतिक समुदाय में "शताब्दी नायक" दादा गुरुदेव प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. जिन्होंने कई बहुमूल्य ग्रंथो की रचना की थी जिसमें "राजेन्द्रकोष" एक ऐतिहासिक एवं विरल विश्व शब्दकोष था / जिसकी आवश्यकता जैनोलोजी पढ़ने वाले लगभग सभी विद्यार्थीयों * * एवं जैन दर्शन पर शोध करनेवालों को जरुरत पड़ती है, उन्ही की पाट परंपरा में अनेक साहित्यविद् हुये हैं जिन्होंने साहित्य ग्रंथ इत्यादि की रचना कर जैन समाज को समर्पित किये है। ऐसे ही प.पू. श्रीमद् विजय यतिन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न साहित्य ग्रंथ इत्यादि की रचना कर जैन समाज को समर्पित किये है। ऐसे ही प.पू. श्रीमद् विजय यतिन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न साहित्यमनीषी प.प. आचार्य श्री जयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी पू. साध्वीजी श्री भुवनप्रभाश्रीजी म.सा. की सुशिष्या पू. साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी म.सा. के चैन्नई चातुर्मास के दरम्यान अपनी विलक्षण प्रतिभा, गजब की कार्यक्षमता एवं ज्ञान की उज्जवलता के बलबूते पर एक अत्यंत कठिन कार्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी की जीवनी एवं उनकी रचनाओं पर शोधकर Ph.D. हासिल की है / ज्ञानोपासना के साथ ही तप त्याग के बेमिसाल संगम की मिसाल भी आपश्री ने चैन्नई चातुर्मास से दरम्यान कायम की / आपश्रीने पू. आचार्य जयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. के उम्र के 73 वे वर्ष में पदार्पण के उपलक्ष में 73 उपवास की उग्र तपस्या की थी और आपने शोधकार्य में पू. आचार्य श्री के मार्गदर्शक और प्रेरणा हेतु 73 उपवास की गुरु दक्षिणा अर्पित की थी। महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म. ज्ञान के अथक उपासक थे / उनकी स्मरण शक्ति विस्मयकारी थी और ज्ञान की पिपासा अद्भत थी / आपश्री ने लगभग 500 ग्रंथों की रचना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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