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________________ चिन्तन का चित्रांकन आध्यात्मरुपी आभा तथा आलोक को चिन्तन के आकाश में इन्द्रधनुषी छटाओं की भांति छिड़क कर उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने आत्मार्थियों के लिये उन्नयन की कई परिभाषाएं निष्कर्षित की हैं / वे शताब्दियों के कालखण्ड में अपनी मेघा, प्रज्ञा, प्रतिभा तथा अनुपम तार्किकता के द्वारा अनुपम हस्ताक्षर स्वीकृत बने तथा उनकी सृजनशीलता ने उन्हें आत्मानुभूतियां की सघनता से सम्बद्ध किय / उपाध्याय श्री यशोविजयजी बहुमुखी व्यक्तित्व से समृद्ध थे / उनके द्वारा जिन ग्रंथों का प्रणयन किया गया उनमें चिन्तन की वैशिष्ट्यताओं का सकारात्मक बोध निहित है। वे सत्य के अनेवषण की दिशा में प्रवृत्त हुए तथा उनका समग्र जीवन शब्द, अर्थ, टीका एवं प्रयोग के भावों का पारदर्शन करने में प्रयुक्त होता रहा / वे आनन्दधन के समकालिन थे / आनन्दघन आध्यात्म की रसानुभूति से जीवन सार्थक करने के लिये क्लिष्ट साधना के अनुगामी रहे / उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने उन्हें आदर्श मान्य किया था / स्वाभाविक है कि आध्यात्म के उस सघन वायुमान ने उपाध्यायजी के चिन्तन पर गहरी छाप मुद्रित की / आध्यात्मसार, आध्यात्मोपनिषद तथा ज्ञानसार जैसे ग्रंथों की रचना से उनने जैन वाङ्मय को समृद्ध किया / उपाध्याय श्री यशोविजयजी का लेखन कई दृष्टियों से परिपक्व एवं परिमार्जित बना है। उनने उदारतापूर्वक दर्शन व तत्त्वज्ञान की ईतर विधाओं की युक्तियों तथा संदर्भो का प्रयोग कर अपने अंतःकरण की उदारता को प्रदर्शित किया है। उनकी शैली में खण्डन, मण्डन एवं समन्वय तीनों विकसित रहे हैं। जैन विषयों का उनका ज्ञान प्रगाढ था, उन विषयों पर अपनी रचनाओं का सृजन उनकी विशेषता रही है। विशेषतः उनके नव्यन्याय, नयप्रमाण, योग के क्षेत्र में अपनी चिन्तनात्मक परिप्राप्तियां की थीं। इनके आधार पर कई वादों के संघर्ष में वे विजयश्री अर्जित करने में सफल रहे / उनने प्रचुर साहित्य-सर्जन किया / शताब्दियों के इतिहास में कुन्दकुन्द, हेमचंद्र, हरिभद्र, सिद्धसेन दिवाकर जैसी विभूतियों से उनने समकक्षता प्राप्त की। उनके चिन्तन की मौलिकता उनकी दिव्य साधना को परछाई का स्वरुप प्रदान करती है। उनके चिन्तन पर शोधपरक प्रयास कर पूज्य साध्वी श्री अमृतरसा श्रीजी महाराज ने अपनी उर्जा तथा अन्तरप्रेरणा के साथ न्याय किया है। उनका यह पुरुषार्थ निस्सन्देह साधुवाद तथा स्वागत की पात्रता से परिपूर्ण है / मैं उनके उज्जवल, यशपूर्ण, आत्मोपलब्ध भविष्य की सइच्छा अर्पित करता हूं। सुरेन्द्र लोढ़ा राष्ट्रीय महामंत्री - अ.भा. श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वे. संघ एवं सम्पादक शाश्वत धर्म (मासिक) व.ध्वज (दैनिक) मन्दसौर (म.प्र.) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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