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________________ जिनभद्रगणि ने एक ही वस्तु में चार पदार्थों की संयोजना की हैअहवा वत्थूभिहाणं णामं ठवणा य जो तयागादो कारणया से दव्यं कज्जवन्नं तयं भावो।। वस्तु का अपना अभिधान नाम निक्षेप है। वस्तु का आकार स्थापना निक्षेप है। कार्यरूप में विद्यमान वस्तु भाव निक्षेप है। कारणरूप में विद्यमान वस्तु द्रव्य निक्षेप है, जैसे-घड़े का 'घट' नाम नामनिक्षेप है। घट का पृथु, बुघ्न, उदर आकार है, वह स्थापना निक्षेप है। मृतिका घट का अतीतकालीन पर्याय है। कपाल घट का भविष्यकालीन पर्याय है। ये दोनों पर्यायी घट पदार्थ से शून्य होने के कारण द्रव्य निक्षेप है। कार्यापन्न पर्याय अर्थात् घट रूप में परिणत पर्याय भाव निक्षेप है। उत्तराध्ययन सूत्र की शान्त्याचार्यवृत्ति में कहा गया है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-इन चार निक्षेपों में सब निक्षेपों का समावेश हो जाता है। जहाँ कहीं इससे अधिक निक्षेपों का प्रयोग होता है, उसके दो प्रयोजन हैं 1. शिक्षार्थी की बुद्धि को व्युत्पन्न करना, 2. सब वस्तुओं के सामान्य, विशेष और उभयात्मक अर्थ का प्रतिपादन करना। नाम आदि निक्षेपों के माध्यम से शास्त्र का प्रतिपादन और ग्रहण सहज हो जाता है। _ 'भण्णइ धिप्पाई य सुहं निक्खेव पयाणुसारओ सत्यं'। जैन आगमों की व्याख्या के सन्दर्भ में निक्षेप पद्धति का बहुलता से प्रयोग हुआ है। अनुयोगद्वार सूत्र में 'आवश्यक' श्रुत-स्कंध आदि शब्द के अर्थ-विमर्श के प्रसंग में निक्षेप का प्रयोग विस्तार से हुआ है। निक्षेप के द्वारा ग्रंथकार प्रतिपादित विषय को अत्यन्त स्पष्ट कर देते हैं, जिससे श्रोता या पाठक प्रतिबोध के हार्द को हृदयंगम करने में समर्थ हो जाता है। निक्षेप के भेद-प्रभेद एवं स्वरूप-विमर्श के द्वारा यह तथ्य स्पष्ट हो जायेगा। निक्षेप की आवश्यकता व्यवहार जगत् में भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जहाँ परस्पर एक-दूसरे से संवाद स्थापित करना होता है, वहाँ शब्द अत्यन्त अपेक्षित है और एक ही शब्द एकाधिक वस्तु एवं उनकी अवस्थाओं के ज्ञापक होने से उसके प्रयोग में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। वस्तु का यथार्थ बोध दुरूह हो जाता है। निक्षेप के द्वारा भाषा प्रयोग की उस दुरूहता का सरलीकरण हो जाता है। निक्षेप भाषा प्रयोग की निर्दोष प्रणाली है। निक्षेप के रूप में जैन परम्परा का भाषा जगत् को महत्त्वपूर्ण योगदान है। निक्षेप की परिभाषा ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि निक्षेप पद्धति का प्रयोग, निक्षेप शब्द का प्रयोग उनके भेद-प्रभेदों का उल्लेख भगवती, अनुयोगद्वार, नियुक्ति साहित्य आदि में उपलब्ध है किन्तु निक्षेप की अर्थमीमांसा, निर्वचन, परिभाषा आदि सर्वप्रथम विशेषावश्यक भाष्य में उपलब्ध है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण निक्षेप का निर्वचन करते हुए कहते हैं निक्खप्पइ तेण तहिं तओ व निक्खेवणं व निक्खेवो। नियओ व निच्छिओ वा खेवो नासो ति जं भणियं / / अर्थात् पद को निश्चित अर्थ में स्थापित करना, अमुक-अमुक अर्थ के लिए शब्द का निक्षेपण करना निक्षेप है। भाष्यकार ने निक्षेप की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा-जिस वस्तु के नाम आदि 239 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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