________________ भेदों में शब्द, अर्थ और बुद्धि-इन तीनों की परिणति होती है, वह निक्षेप है। सम्पूर्ण वस्तुएँ लोक में निश्चित ही नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-इन चार पदार्थों से युक्त हैं। नामइ भेयसदत्थबुद्धि परिणमभावओ निययं। जं वत्थुमत्थि लोए च उपज्जायं तय सव्वं / / निक्षेप जैन दर्शन का पारिभाषित शब्द है। निक्षेप का पर्यायवाची शब्द न्यास है, जिसका प्रयोग तत्त्वार्थसूत्र में हुआ है। 'न्यासो निक्षेपः' निक्षेप की जैन ग्रंथों में अनेक परिभाषाएँ उपलब्ध हैं। बृहद नयचक्र में निक्षेप को परिभाषित करते हुए कहा गया श्रुती सुजुतमग्गे जं चउभेचेण होइ खलु ठवणं। वज्जे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समये।। युक्तिपूर्वक प्रयोजन युक्त नाम आदि चार भेद से वस्तु को स्थापित करना निक्षेप है। जैन सिद्धान्तदीपिका में भाव अभिव्यंजित करते हुए कहा है-'शब्ददेषु विशेषणबलेन प्रतिनियतार्थ प्रतिपादन शकते निक्षेपणं निक्षेपः' शब्दों में विशेषण के द्वारा प्रतिनियत अर्थ का प्रतिपादन करने की शक्ति निहित करने को निक्षेप कहा जाता है। निक्षेप पदार्थ और शब्द-प्रयोग की संगति का सूत्रधार है। निक्षेप भाव और भाषा, वाक्य और वाचक की सम्बन्ध पद्धति है। संक्षेप में शब्द और अर्थ की प्रासंगिक सुसंबंध-संयोजक को निक्षेप कहा जा सकता है। निक्षेप के द्वारा पदार्थ की स्थिति के अनुरूप . शब्द संयोजक का निर्देश प्राप्त होता है। निक्षेप सविशेषण सुसम्बद्ध भाषा का प्रयोग है। तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया-'नामस्थापना द्रव्यभाव तस्तन्नयासः' / वस्तु के सम्यक् सम्बोध में प्रमाण, नय एवं निक्षेप का महत्त्वपूर्ण स्थान है। निक्षेप का लाभ प्रत्येक शब्द में असंख्य अर्थों को द्योतित करने की शक्ति होती है। एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। वह अनेक वाक्यों का वाचक बन सकता है, ऐसी स्थिति में वस्तु के अवबोध में भ्रम हो सकता है। निक्षेप के द्वारा अप्रस्तुत अर्थ को दूर कर प्रस्तुत अर्थ का बोध कराया जाता है। अप्रस्तुत का अनावरण एवं प्रस्तुत का प्रकटीकरण ही निक्षेप का फल है। लघीयस्त्रयी में यही भाव अभिव्यंजित हुए हैं अप्रस्तुतार्थपाकरणात् प्रस्तुतार्थव्याकरणाच्च निक्षेपः फलवान्। निक्षेप के भेद पदार्थ अनन्त धर्मात्मक है। अतः विस्तार में जाएँ तो कहना होगा कि वस्तु विन्यास के जितने प्रकार हैं, उतने ही निक्षेप के भेद हैं किन्तु संक्षेप में चार निक्षेपों का निर्देश प्राप्त होता है। अनुयोग द्रव्य में भी कहा गया है जत्थ च जं जाणेण्णा निक्खेवं निक्खवे निरवसेसं। जत्थ वि य न जाणेज्जा चउक्कगं निक्खिवे तत्थ।। जहाँ जितने निक्षेप ज्ञात हों, वहाँ उन सभी का उपयोग किया जाये और जहाँ अधिक निक्षेप ज्ञात न हो, वहाँ कम से कम नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव-इन चार निक्षेपों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। पदार्थ का कोई-न-कोई नाम तथा आकार होता है तथा उसके भावी एवं वर्तमान पर्याय होते हैं। अतः निक्षेप चतुष्टयी पदार्थ भी स्वतः फलित होता है। पदार्थ के नाम के आधार पर नाम-निक्षेप, आकार 240 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org