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________________ * स्थापना मंगल-'म' आदि जो वर्ण हैं, उनका उच्चार करके मंगल शब्द बोला जाता है या लिखा जाता है, वो स्थापना मंगल है। * द्रव्य मंगल-अक्षत, रत्न, दही, कुंकुं आदि पदार्थों को द्रव्यमंगल कहा जाता है। * भाव मंगल-जिननमन स्मरणादि क्रिया भाव मंगल है।157 'लघीयस्त्रयी' 158 नामक ग्रंथ में निक्षेप का वर्णन करते हुए बताया गया है कि अप्रस्तुत अर्थ में उत्पन्न शंका का निराकरण करके प्रस्तुत अर्थ का निर्णय करने वाला निक्षेप कहलाता है। निक्षेप का उद्भव द्रव्य अनन्तपर्यायात्मक होता है। उन अनन्त पर्यायों को जानने के लिए अनन्त शब्द आवश्यक है। शब्दकोष में शब्द बहुत सीमित हैं। हम संकेतविध के अनुसार एक शब्द का अनेक अर्थों में प्रयोग करते हैं। इनका परिणाम यह होता है कि पाठक अथवा श्रोता विवक्षित अर्थ को पकड़ नहीं पाता, फलतः अनिर्णय की स्थिति बन जाती है। उस अनिर्णय की स्थिति का निराकरण करने के लिए जैनाचार्यों ने निक्षेप विधि का आविष्कार किया। निक्षेप का उद्भव व्यवहार की सम्यक् संयोजना के लिए हुआ। व्यवहार की सम्यक् योजना करने के लिए जिस पद्धति का अनुसरण किया जाता है, उसको निक्षेप कहते हैं। निक्षेप का प्रयोजन है-वाक्य रचना का ऐसा विन्यास, जिससे पाठक अथवा श्रोता विवक्षित अर्थ को ग्रहण कर सके। इसके लिए प्रत्येक पर्याय के लिए विशेषण युक्त वाक्य रचना अपेक्षित है। निक्षेप पद्धति में एक शब्द की अनेक सन्दर्भो में जानकारी मिलती है। मनुष्य ज्ञाता है और पदार्थ ज्ञेय है। ज्ञाता और ज्ञेय का सम्बन्ध कैसे स्थापित हो सकता है, यह एक दार्शनिक प्रश्न है। इस प्रश्न को जैन दर्शन में निक्षेप पद्धति द्वारा सुलझाया गया है। •निक्षेप का विकास क्रम-क्षेत्र, काल आदि अनेक धर्म हैं। उनमें वस्तु का आरोहण किया जाता है, इसलिए निक्षेप अनेक बनते हैं। वस्तु के आन्तरिक और बाह्य जितने धर्म हैं, उतने ही निक्षेप हो सकते हैं। इसलिए सूत्रकार ने निक्षेप संख्यातीत बताये हैं। उत्तराध्ययन नियुक्ति में 'उत्तर' शब्द के पन्द्रह निक्षेप किये गये हैं नाम ठवणा दविए खित दिसा तावरिवत पन्नवाएं। पइकालसंचय पहाण नाणकमगणणओ भावे।। / आचारांग नियुक्ति में तथा कषायपाहुड में कषाय शब्द के आठ निक्षेप किये हैं णाम ठवणा दविए उप्पती पच्चए य आएसो। रसभाव कसाए या तेण य कोहाइया चउरो।। कषाओ ताव णिकिखवियव्वो णामकसाओ ठवण कसाओ। दव्वकसाओ पच्चयकसाओ समुत्यतिकसाओ आदेसकसाओ रसकासाओ भावकसाओ चेदि।।160 निक्षेप का वस्तु अवबोध में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिस वस्तु में जितने निक्षेप किए जा सकें, उतने करने चाहिए किन्तु कम से कम चार निक्षेपों का प्रयोग अवश्य किया जाये। नाम और स्थापना के बिना वस्तु की पहचान नहीं होती। ये दोनों वस्तु की अवस्थाएँ हैं। वस्तु की जानकारी के लिए वर्तमान पर्याय में उसका निक्षेपण आवश्यक है। इस प्रकार नाम, रूप और अवस्था में वस्तु का निक्षेपण करना न्यूनतम अपेक्षा है। निक्षेप के इन चार प्रकारों का ही प्रयोग ग्रंथों में बहुलतया उपलब्ध होता है। 238 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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