________________ मध्यलोक-मध्यलोक के केन्द्र में 45 लाख योजन विस्तार वाला मनुष्य क्षेत्र है। इसे समयक्षेत्र भी कहते हैं। ढाई द्वीप इसका अपर नाम है। इस मध्यलोक में असंख्य द्वीप, असंख्य समुद्र है, जहाँ त्रस एवं स्थावर जीवों का निवास ढाई द्वीप तक है, इसके आगे नहीं। तिर्यक् लोक-तिर्यंच योनि वाले जीवों का अधिवास क्षेत्र तिर्यक् लोक है। स्थावर एवं त्रस भेद से दो प्रकार का है। स्थावर जीवों का आवास सम्पूर्ण लोक है। त्रस जीव केवल मध्यलोक अर्थात् त्रसनाली में ही पाए जाते हैं। इस प्रकार अनन्त जीवों का निवास सम्पूर्ण लोक है, जहाँ अनन्त जीवात्माएँ देव, मनुष्य, तिर्यंच तथा त्रस स्थावर आदि के रूप में दिशा विदिशाओं में अवस्थित हैं। जैन दर्शन में लोक को समझने के लिए चार दृष्टिकोणों का प्रयोग किया गया है। भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम ने प्रश्न पूछा कतिविहेणं भंते! लोए पण्णते? गोयमा! चउविहे लोए पण्णते। तं जहां दव्वलोए, खेतलोए, काललोए, भावलोए! 1. द्रव्यलोक, 2. क्षेत्रलोक, 3. काललोक एवं 4. भावलोक। द्रव्यलोक का तात्पर्य है द्रव्य की अपेक्षा से लोक की व्याख्या। जिसे जैनदर्शन द्रव्य की संज्ञा देता .. है, वह अन्य दर्शनों में या विज्ञान में मूल पदार्थ के रूप में जाना जाता है। सभी दर्शन भिन्न-भिन्न . . रूप से विश्व के द्रव्यों की संख्या बताते हैं। जैन दर्शन के अनुसार सारा लोक पंच अस्तिकाय या षड्द्रव्य के अतिरिक्त कुछ नहीं है। जैनदर्शन के अनुसार द्रव्यलोक का स्वरूप इस प्रकार है द्रव्यलोक जीव द्रव्य अजीव द्रव्य अस्तिकाय अनस्तिकाय धर्म अधर्म आकाश पुद्गल संख्या की दृष्टि से-छः द्रव्यों में संख्या की दृष्टि से धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय एक-एक द्रव्य है। पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल अनन्त द्रव्य हैं। द्रव्य एक अनेक धर्म अधर्म आकाश पुद्गल जीव काल 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org