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________________ भगिन्याभिनन्दनम् “णाणस्स सारमायारो” - ज्ञान का सार आचार है / कहां भी है कि “ज्ञानी सर्वत्र पूज्यते” - ज्ञानी यत्र, तत्र, सर्वत्र पूजा जाता है / इसी उक्ति को चरितार्थ करते हुए आचार की पृष्ठभूमि को मजबूत बनाने हेतु हमारी गुरु-भगिनी साध्वीजी श्री अमृतरसाश्रीजी ने अध्यात्मयोगी, न्यायविशारद, न्यायाचार्य उपाध्याय यशोविजय के दार्शनिक चिंतन का वैशिष्ट्य इस विषय पर गहन अध्ययन कर शोधग्रन्थ प्रस्तुत किया है। उपाध्याय यशोविजय जी १९वीं सदी के एक विशिष्ट पुरुष थे / वो योगी नहीं महायोगी थे / वो युगदृष्टा एवं युगसष्टा भी थे / महान परिव्राजक भी थे / उन्होंने संस्कृत-प्राकृत, हिन्दी-गुजराती आदि में अनेक साहित्यों की रचना की थी / वे ज्ञान के धनी थे / उनका पुरा जीवन ज्ञानमय था / उपाध्यायजी जब काशी से पढकर आये थे तब श्रावको ने प्रतिक्रमण में सज्झाय बोलने को कहा तब उपाध्यायजी ने कहा कि मुझे याद नहीं है / तब श्रावकों ने कहा कि 12 वर्ष काशी में रहकार क्या घास काटा / उसी समय वो मौन रहे / फिर दूसरे दिन प्रतिक्रमण में सज्झाय का आदेश लिया और सज्झाय के 67 बोल की सज्झाय को बनाते गये और बोलते गये / तब श्रावक लोग थक गये उन्होंने कहा कि अभी कितनी बाकी है / तब उपाध्यायजी ने कहा कि मैंने 12 वर्ष काशी में घास काटा है उनका पूला बना रहा हूँ। ऐसे वे ज्ञान के धनी थे। ऐसे ज्ञाननिष्ठयशोविजय के संपूर्ण साहित्य पर मेरी गुरुभगिनी साध्वीजी अमृतरसाश्रीजी को Ph.D. करने का पुण्य से योग मिला / श्रेयांसि बहुविघ्नानि - श्रेष्ठ कार्य में अनेक विघ्न आते हैं | दक्षिण भारत का विहार, पुस्तकों की अनुपलब्धि, कठिन ग्रंथ, पढाने वाले का अभाव फिर भी कहते है कि जहाँ चाह होती है वहाँ राह मिल जाती है / उसी उक्ति को चरितार्थ कर एवं आपकी ज्ञान के प्रति अत्यंत रुचि, निष्ठ, जिज्ञासा होने के कारण इधर-उधर, आहोर, थराद, मद्रास, कोबा, मैसूर, धोलका, पाटण जहां से पुस्तके उपलब्ध हुई वहां से मंगवाई / इन सब के पीछे दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की दिव्यकृपा मिली एवं हमारे संयमदाता, अनंत उपकारी पूज्य गुरुदेवश्री के मंगल आशीर्वाद एवं सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही क्योंकि गुरुदेवश्री साहित्य के सर्जक है | आज तक उन्होंने अनेक साहित्य की रचना की है / पूरे दिन गुरुदेवश्री का चिंतन चलता ही रहता है / ऐसे गुरुदेवजी के आशीर्वाद एवं साध्वीजी की जिज्ञासा ने उनको आगे बढाया / साथ ही मम गुरुमैया पूज्य भुवनप्रभाश्रीजी म.सा. की भी ज्ञान के प्रति, सतत प्रेरणा रही और आगे बढाने के लिए आशीर्वाद देते रहे / वो आज उपस्थित नहीं है फिर भी उनकी अदृश्य कृपा सदैव बरसती हैं / इन सभी वडीलों के आशीर्वाद से यशोविजयजी के साहित्य में Ph.D. उपाधि हमारी गुरु भगिनी ने प्राप्त की बहोत बहोत हमारी और से बधाई हो एवं आगे भी आपका जीवन ज्ञानमय बने यही मंगलकामना / "गुरुओं की मंजिल तक चलते है वो लोग निराले होते है / गुरुओं का आशीर्वाद मिलता है वो लोग किस्मतवाले होते है / " आगे बढना जिनकी उमंग है, फूलों सा खिलना जिनकी तरंग है / रुकना नहीं सिखा जिसने, सफलता हमेशा उसी के संग है / सर्व कार्यो मंगलमय हो इसी शुभकामना के साथ / भुवनशिशु भक्ति सिद्धांत Foresonal & Private Use Only saptinelibrary.eig
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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