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________________ शुभाशंसा साध्वी अमृतरसाश्री ने ‘उपाध्याय यशोविजय के दार्शनिक वैशिष्ट्य' विषय पर अपना शोधकार्य जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं से सम्पन्न कर डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। मैं अपने आपको अत्यन्त सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे निर्देशक के रूप में इस पुनीतकार्य का निर्देशन करने का अवसर मिला। कहते हैं कि ज्ञानयज्ञ में जितनी आहुतियाँ दी जाय कम है। इस ज्ञानयज्ञ का वैशिष्ट्य इसलिए है कि जिनशासन के यशस्वी आचार्य परम्परा में महामहोपाध्याय श्री यशोविजय की सुकीर्ति विद्वमानस को चिरकाल से प्रकाशित कर रही है। श्री हरिभद्रसूरि एवं कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरि के पश्चात उनका अग्रगण्य स्थान रहा है। उनकी योग्यता, क्षमता एवं विद्वत्ता को देखते हुए सुजसवेली भास में उन्हें 'कलिकाल श्रुतकेवली' कहा गया है। साहित्य के क्षेत्र में उनकी कृतियां संस्कृत, प्राकृत, गुजराती और हिन्दी-मारवाड़ी में गद्यबद्ध, पद्यबद्ध और गद्यपद्यबद्ध भी हैं। शैली की दृष्टि से उनकी कृतियाँ खण्डनात्मक भी हैं, प्रतिपादनात्मक भी हैं और समन्वयात्मक भी हैं। उनकी अपूर्व साहित्य सेवा से पता चलता है कि वे व्याकरण, काव्य, कोष, अलंकार, छंद, तर्क, आगम, नय, निक्षेप, प्रमाण, सप्तभंगी आदि अनेक विषयों के सूक्ष्मज्ञान के धारक थे। तर्काधिपति होते हुए भी उन्होंने तर्क एवं सिद्धान्त को सन्तुलित रखा। ऐसे यशस्वी, मनस्वी, तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी उपाध्याय यशोविजय के दार्शनिक ग्रन्थों का पारायणकर उनकी साहित्य गंगोत्री में डुबकी लगाकर जिन महर्धमणिकाओं को साध्वी अमृतरसाश्री ने जनसम्मुख प्रस्तुत किया है, उसका पुस्तकाकार रूप अध्येताओं के लिए मार्गदर्शक बनेगा, उनकी ज्ञान पिपासा को शान्त करेगा तथा शोधार्थियों के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त करेगा। साध्वीजी का यह श्रमसाध्य कार्य सभी अध्येताओं की ज्ञान वृद्धि करेगा, ऐसी आशा की जा सकती है। पुस्तक प्रकाशन के अवसर पर साध्वीजी को साधुवाद देना चाहूंगा कि उनका श्रम, उनका अध्यवसाय सार्थक हो, सफल हो। उनके अथकश्रम के परिणाम स्वरूप प्रस्तुत पुस्तक का स्वागत दर्शन जगत में निस्संदेह होगा। उनकी साहित्य साधना, उनकी आराधना एवं उनकी उपासना उत्तरोत्तर अभ्युत्थान को प्राप्त हो, इसी शुभाशंसा के साथ सर्वमंगल की पावन कामना करता हूँ। दिनांक : 14.11.2013 डॉ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी निर्देशक, दूरस्थ शिक्षा निर्देशालय जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूं-341 306 (राज.) Emestion international For Personal & Private Use Only ainerary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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