________________ 78. प्रभानैर्मल्यशक्तिनां यथा रत्नान भिन्नता। ज्ञानदर्शन चारित्रलक्षणान तथात्मनः / / 7 / / -आत्मनिश्चय अधिकार, अध्यात्मसार 79. वस्तुतस्तु गुणानां तद्दरूप न स्वात्मनः पृथक् / आत्मा स्वादन्यथानात्मा ज्ञानाधपि जऊं भवेत।।32 / / -वही 80. यथैक हेम केयूरकुंडलादिषु वर्तते। नृनारकादिभावेषु तथात्मैको निरंजनः / / 24 / / -आत्मनिश्चयअधिकार, अध्यात्मसार, 701 81. देहेन सममेकत्वं मन्यते व्यवहारवित्। क्थाचिन्मूर्ततापर्तेवैदनादि समुद्रभवात् / / 34 / / -आत्मनिश्चयअधिकार, अध्यात्मसार 82. भगवती सूत्र, 13/7/495 83. व्यवहारणयो भसदि जीवो देहो य हवदि खलु इवको। ण दु णिच्छयस्स जीवो देहो व कदापि एक हो।।32 / / -समयसार 84. उष्णसथाग्नेर्यथा योगाद धतृमृष्णमिति भ्रमः। तथा मुगिसंबंधदात्मा मूर्त इति भ्रमः।।36 / / -आत्मनिश्चयअधिकार, अध्यात्मसार 85. न रूपं न रसो गंधो न, न स्पर्शा न चाकृतिः। यस्य धर्मा न शब्दो वा तस्य का नाम मूर्तता।।37।। -वही 86. द्रव्य भावे समानेपि जीवा जीवत्व भेदवत्। जीवभाव समानेपि भव्या भव्यत्वयोर्भिदा।।69 / / -मिथ्यात्वत्यागाधिकार अध्यात्मसार / 87. दव्वाइते तुल्ले जीव नहाणं सभावओ भेओ। जीवाजीवाइगओ जह, तह भव्वे यर विसेसो।। -विशेषावश्यक भाष्य, 1823 88. जीवभव्याभव्यत्वादिनी च। -तत्त्वार्थ सूत्र, द्वितीय अध्ययन, उमास्वामी 89. अणाइपरिणामिए....जीवास्तिकाए....भवसिद्धि आ, अभव सिद्धिओ से तं. अणाइपरिणामिए। -अनुयोगद्वार सूत्र, 250 90. (1) प्रतिमादलपत क्यापि फलाभावेऽपि योग्यता।।1।। -मिथ्यात्वत्यागाधिकार, अध्यात्मसार (2) भण्णई भव्वो जोग्गो न य जोग्गतेण सिज्झा सव्वो। जह जोग्गमि वि दलिए सव्वमि न कीरए पडिमा।। -विशेषावश्यक भाष्य, 1834 91. मिला प्रकाश खिला बसंत, आचार्य जयन्तसेनसूरि 92. जह वा स एव पाषाण-कणगजोगो विओगजोग्गो वि। न विजुज्जइ सव्वोच्चिय स विउज्जइ जस्स संपति। -विशेषावश्यक भाष्य, 1835 93. आत्मानि कर्म पुद्गलानाम लेशनात्-संश्लेषणात् लेश्या, योग परिणामाश्चैताः। -भगवती श., 8, 3, 9, सूत्र 351, 1/2/5-18 की टीका 94. कषायोदयरंजिता योगप्रवृत्ति लेश्या। -तत्त्वार्थ राजवार्तिक, 216 95. निर्दयत्वाननुशयौ बहुमानः परापदि। भिंगान्यत्रेत्यदो धीरैस्त्याज्य नरकदुःखदम्।।16।। --ध्यानाधिकार, अध्यात्मसार या। 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org