________________ . 96. पंचासवप्पवतो तीहिं अगुत्तो ठसुअविरओ य। तिव्वारंभ परिणओ खुदो साहसिओ नरो।।21 / / निध्यधस परिणामो, निससओ अजिइंदिओ। एय जोग समाउणे किण्हलेसं तु परिणमे / / 22 / / -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 34 97. इम्मा अमरिस-अत्तवो भाया अहीरिया य। गेद्धी पओसे य सठे, पमते रस लोलुए सायगवेसए।।23 / / -वही 98. गोम्मटसार, अधिकार 15, गाथा 514 99. तद्वोः शुक्ला तृतीये च लेश्या सा परमा मता। चतुर्थः शुक्ल भेदस्तु लेश्यातीत प्रकीर्तितः।।82 / / -ध्यानाधिकार, अध्यात्मसार 100. बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन (भाग-1) 101. विषयकषायावेशः तत्त्वाश्रद्धा गुणेषु च द्वेषः / ___आत्मज्ञानं च यदा बाह्यात्मा स्यात्तदा व्यक्तः।।22 / / -अनुभव अधिकार, अध्यात्मसार 102. ज्ञान केवलसंज्ञ योगनिरोधः समग्रकर्महति। सिद्धिनिवाश्च यदा परमात्मा स्यातदा व्यक्त5 / / 24 / / -अनुभव अधिकार, अध्यात्मसार 103. अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य। अप्पा मितममितं च दुप्पट्ठिय सुपट्ठियो।।37 / / अप्पा नई वैयरणी अप्पा मे कूडशामली। अप्पा कामदुहा घेणु अप्पा मे नन्दणं वणं / / 36 / / -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन-20 104. व्यवहारविनिष्णातो यो ज्ञाीप्सति विनिश्चयम्। कासारतरणाशक्तः स तितीषति सागरम्।।195।। -आत्मनिश्चयाधिकार, अध्यात्मसार 105. व्याप्नोति महती भूमिं वटबीजजाधथा वटः। यथेक्ममताबीजात् प्रपंचस्यापि कल्पना।।161 / / -ममत्व अधिकार, अध्यात्मसार 106. बालुडी अवला और किसौ करै, पीउडो रविअस्तगत थई। पूरबदिसि तजि पश्चिम रातडौरविअस्तगतथई।। -आनन्दघन ग्रंथावली, पर-4 107. पूर्णता या परौपाधैः सा याचितकमण्डनम्। या तु स्वाभिविकी सैव, जात्यरत्नविभानिभा।।2।। -पूर्णताअष्टक, ज्ञानसार 108. शुद्धोपि व्योम्नि तिमिराद् रेखाभिर्मिश्रता यथा। विकारैर्मिश्रता भाति, तथात्मन्य विवेक्तः।।3।। -विवेक अष्टक, 15 109. ईदं हि परमाध्यमात्मममृत ह्याद एवं च। ईदं हि परमं ज्ञानं, योगोयं, परमः स्मृतः।। -आत्मनिश्चयाधिकार, अध्यात्मसार 110. विषयान् साधकः पूर्वमनिष्टत्वाधिया त्यजेत। न त्यजेन्न च गृहणीयात् सिद्धो विन्धात् स तत्वत।। -अध्यात्मोपनिषद्, अध्यात्मसार 118 10 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International