________________ * 57. दुर्गतिप्रतत्प्राणि धारणादुर्म उच्चते। संयमादिर्दशविधः सर्वज्ञोक्तो विमुक्त्यो।।11।। -योगशास्त्र, द्वितीय प्रकाश, हेमचन्द्रसूरि 58. तत्पंचमगुणस्थानादारभ्येवैतदिच्छति। निश्चयो व्यवहारस्तु पूर्वमप्यूपचारातः / / 2 / / -अध्यात्मसार 59. कान्ताधर सुधास्वादाधूनी यज्जायते सुखम्। बिन्दुः पार्वे तदध्यात्मशास्त्रास्वाद सुखौदधेः / / -अध्यात्म महामात्य अधिकार, अध्यात्मसार 60. भूशय्या भैक्षमशन, जीर्णवासे ग्रहं वनं। तथापि निस्पृहस्याहो चक्रिणोत्यधिक सुखम् / / 7 / / -ज्ञानसार, 12वां अष्टक 61. अपूर्णा विधेव प्रकटखलमैत्रीय कुनय। प्रणालीपास्थाने विधववनिता यौवन भिव।। -अध्यात्मसार 62. पुरा प्रेमारंभे तदनु तदविच्छेद धरने। तदुच्छदे दुःखाव्यथ कढिनचेतो विषहते।। -अध्यात्मसार 63. विषय सुहं दुषरवं चिय, दुक्खप्पडियारओ निगिच्छव। . तं सुहभुवयाराओ न उवयारो विणा तत्वं / / -विशेषावश्यक भाष्य 64. हसन्ति क्रिडन्ति क्षणमथ खिद्यन्ति बहुधा। - रूदन्ति कुदन्ति क्षणामपि विचादं विदधते।। -अध्यात्मसार 65. भवे या राज्य श्रीगंज तुरगगो संग्रहकृत। न सा ज्ञानध्यान प्रशमजनिता किं स्वमनसि / / -भवस्वरूप चिंता अधिकार, अध्यात्मसार .66. ज्ञाते हयत्मनि नो भूयो ज्ञातव्यमवशिष्यते। अज्ञाते पुनरेतस्मिन् ज्ञानमन्यन्निरर्थकम्।।2।। -अध्यात्मनिश्चय अधिकार, अध्यात्मसार 67. यः आत्मवित् स सर्ववित्। -छान्दोग्योपनिषद् 68. जे अज्झथं जाणई से बहिया जाणइ। -आचारांग सूत्र 69. जे आया से विण्णाया से आया जेण विजाणपति से आया। -आचारांग सूत्र, 2/5/51 70. शुद्धात्मद्रव्य मेवाहे, शुद्ध ज्ञानं गुणो मम। -मोहत्याग अष्टक, ज्ञानसार 71. आचारांग महाभाष्य, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 243 72. आत्मा उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तः। आत्मनः अस्तित्वं ध्रुवः, ज्ञानस्य परिणामः अत्पधन्ते व्ययन्ते च। -आचारांग महाभाष्य, गाथा 284 73. उपओग लक्खणे जीवे। -भगवती सूत्र, भ. 2, उद्देशक 10 74. जीवो उवओग लक्खणो। -उत्तराध्ययन सूत्र, 28/10 75. उपयोगो लक्षणम्, 181; तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-2 76. दुविहे उवओगे पण्णत्ते-सागारोवओगे, अणागारवओगे य प्रज्ञापना सूत्र, पद-21 77. आत्मात्मन्येव यच्छुद्र जानात्यात्मानमात्माना। सेयं रत्नत्रये ज्ञप्तिरूच्याचारैकता मुनेः / / 2 / / -ज्ञानसार, 13/2 116 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org